loader image
Close
  • Home
  • About
  • Contact
  • Home
  • About
  • Contact
Facebook Instagram

जयोदय महाकाव्य

जयोदय महाकाव्य 11से15

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

ग्यारहवां रंग

पा सुलोचन झील,
जै सु-लोचन मीन सलील ।।१।।

जा पहुँची जै नजर,
सीधे वधु चेहरे पर ।।२।।

थी बड़भाग,
जो देख रही आज, चाँद बेदाग ।|३।।

ऐसा चन्द्रमा,
न छाये जीवन में, जिसके अमा ।।४।।

कलाएँ, सच बताएँ,
बढ़ती ही बढ़ती जाएँ ।।५।।

जो नाहिं सूर से ‘लेवे-नूर’
बल्कि जिससे सूर ।।६।।

न निकलता रात ही,
चमकता रहे प्रात भी ।।७।।

‘जि दिल खोल,
लुटाता अमृत न ‘कि तोल-मोल ।।८।।

सनख-शिख शीत, लता,
दे सिर्फ न शीतलता ।।९।।

बनाया गया था सुलोचना माथा,
ले चाँद आधा ।।१०।।

तभी अमृत की बूँदे हो इकट्ठी,
बनी नाक थी ।।११।।

और जो बूँदें बिखर पड़ीं,
बनीं वे दन्त लड़ीं ।।१२।।

कर आधे के यूँ दो हिस्से,
बनाये गाल उसके ।।१३।।

ये केशपाश,
न लेशमात्र गो’री चमरी पास ।।१४।।

कुंतल ऐसे कोमल,
‘कि चुराये-दृग्-मलमल ।।१५।।

सच ! निराले, चिकने काले,
कच घूॅंघर वाले ।।१६।।

अनूठी चोटी, जंघा छूती,
विहर उपमा तूती ।।१७।।

ला पुष्प स्वर्ग धरा,
बनाया बालों का था गजरा ।।१८।।

पलकें छूती माथ अलकें,
पन अपूर्व रखें ।।१९।।

थोड़ा-सा, बालों से ढ़का माथा,
चाँद-दूसरे नाता ।।२०।।

दिखीं
तरह-तरह की भ्रुएँ, ना ‘कि ऐसी बॉंकीं ।।२१।।

बड़ीं निरालीं,
भ्रु दोनों कीं हीं दोनों, घनी व कालीं ।।२२।।

कुछ अलग सा,
बीचों बीच भ्रुओं के तिलक था ।।२३।।

ए ! जिया देख,
आजू तिलक बाजू बिंदिया नेक ।।२४।।

बिंदिंयां कैसीं,
दोनों और सप्तर्षि तरैय्या जैसीं ।।२५।।

नीचे बिंदिंयों के अमाँ !
मुस्कुराता दूज चन्द्रमा ।।२६।।

घेरे तिलक,
सीकर सी बिंदिंयां हेरे मुलक ।।२७।।

जिसके नेक रंग,
रंगीन ‘मानौ’ उड़े पतंग ।।२८।।

जादूगरी से भरी,
पलकें दोनों पद्म पाँखुरी ।।२९।।

उठ ‘पलक’ झुक चलीं,
सार्थक काम विरली ।।३०।।

थी कई देखी झील,
पै इन नैन-सी कहॉं नील ।।३१।।

नीला आसमाँ,
पै कहाँ सुलोचन लोचन समाँ ।।३२।।

कुछ कमती न जादुई,
ये आँखें हैं सुरमई ।।३३।।

दृग् कोर छूती क्षितिज छोर,
कहाँ और चित्-चोर ।।३४।।

इक कसक,
अजीबो-गरीब सी सुलोचना दृग् ।।३५।।

या… हू,
झुकाना लोचना सुलोचना
उठाना जादू ।।३६।।

शुभ शगुन,
लोचना सुलोचना सुबह धुन ।।३७।।

चारु अनल्प,
लोचना… सुलोचना रु तरु कल्प ।।३८।।

समान मीन,
लोचना… सुलोचना विमान चीन ।।३९।।

भूल भुलैय्या
लोचना… सुलोचना जी पुर नैय्या ।।४०।।

हिरनियों से,
लोचना… सुलोचना ‘जि परिंयों से ।।४१।।

और भँवरा,
लोचना… सुलोचना चोर हिवरा ।।४२।।

है सुहावने,
लोचना… सुलोचना सौभाग घने ।।४३।।

जग से न्यारे,
लोचना… सुलोचना हैं कजरारे ।।४४।।

जी संजीवन,
लोचना… सुलोचना दीवा रतन ।।४५।।

अमाँ विशाल,
लोचना… सुलोचना समाँ प्रवाल ।।४६।।

सुन्दरतम,
लोचना… सुलोचना घर शरम ।।४७।।

नीले-नीले से,
लोचना… सुलोचना सीले-सीले से ।।४८।।

झुके-झुके से,
लोचना… सुलोचना पद्य खिले से ।।४९।।

पाँख गुलाब,
लोचना… सुलोचना हैं लाजबाव ।।५०।।

सौम्य अनूठे,
दृग् सुलोचना ‘पल-तारिका टूटे’ ।।५१।।

और किसी के है ना,
सुलोचना से चंचल नैना ।।५२।।

सहेजने,
दृग् सुलोचना योग्य न सिर्फ देखने ।।५३।।

ध्रुव तारिया सी,
चारु सुलोचना दृग् तारिका ‘जी’ ।।५४।।

दृग्-सुलोचना भासी,
भा-मोती सीप खुल्ली जरा सी ।।५५।।

हों खुलीं, चाहें बन्द,
दृग् सुलोचना स्रोत आनन्द ।।५६।।

‘जि सुलोचना नासिका,
त्यों सीधी ज्यों दीपिका शिखा ।।५७।।

‘जि सुलोचना नाक ज्यों,
चारु पुष्प, न चम्पक त्यों ।।५८।।

नाक न ज्योति,
जैसा सुलोचना की नाक का मोति ।।५९।।

साँची दूज न इस भू,
सुलोचना साँसों सी खुश्बू ।।६०।।

नासिका अणी,
सुलोचना दृष्टि पा सबसे धनी ।।६१।।

गहरी खास,
सहेली सुलोचना गहरी साँस ।।६२।।

लिये कुण्डल-झलकन,
कपोल दूजे दर्पण ।।६३।।

गाल गोरे,
जी हरने वाले, तिल गहरे काले ।।६४।।

खूब सूरत कान,
बेशक आप-आप समान ।।६५।।

गुलाब गौर,
सुलोचना शष्कुली-कर्ण न और ।।६६।।

झुक-झूम के,
नॉंचते, पा कर्ण-लोल झुमके ।।६७।।

सुन्दर बड़ी,
पहने सुलोचना को कनचढ़ी ।।६८।।

‘जि सुलोचना ‘अधर’
उठती सी सिन्धु लहर ।।६९।।

रम्य कमल से,
होंठ सुलोचना बिम्ब-फल से ।।७०।।

नाहक लाली,
वैसे भी सुलोचना होंठ लाल ही ।।७१।।

गज मोतिंयों को देते मात,
ऐसे सुन्दर दाँत ।।७२।।

सित नक्षत्रों से मिलती जुलती,
‘जि दन्त पंक्ति ।।७३।।

दाने अनार चुगता कीर,
दाँत नाक तस्वीर ।।७४।।

बजाती घड़ी में दश : दश,
मुस्कान पुष्प सदृश ।।७५।।

सुन्दर सी है,
सुलोचना चिबुक दूज शशी है ।।७६।।

यूँ शंखावर्त गला,
देखा अनोखा न और मिला ।।७७।।

कण्ठ-सुन्दर, सुन्दर छेड़े राग,
सोने सुहाग ।।७८।।

हार जिसमें कोहेनूर जढ़ा,
‘जि सुन्दर बड़ा ।।७९।।

कमल नाल-से, कर,
कर-तल भा प्रवाल से ।।८०।।

कर तालिंयाँ,
लम्बीं और नुकीलीं सीं अंगुलिंयाँ ।।८१।।

देखते ही दृग् नजूम निष्पन्द,
‘कि यूँ मणी-बन्ध ।।८२।।

पर्वत उठे-उठे सारे,
करते नेक इशारे ।।८३।।

मेंहदी हाथ में,
रही निवस न किस आँख में ।।८४।।

आभा नखों की प्रभावी,
गुलाब के जैसी गुलाबी ।।८५।।

जो थी चलती फिरती सामुद्रिक पोथी,
अनोखी ।।८६।।

कर लेती थी अपनी दवा,
नीचे नखों के दबा ।।८७।।

देखीं बहुत,
कलाई पै, न दिखी ऐसी अद्भुत ।।८८।।

काँच चूड़ियाँ अनगिन,
करती खनन-नन ।।८९।।

छटी छटाई,
कटि सुलोचना ने केशरी पाई ।।९०।।

अनेक लर वाली,
थी करधनी झालर वाली ।।९१।।

थी पढ़ी कक्षा दूसरी वो,
‘जि ओढ़े थी चूनरी वो ।।९२।।

बहुत आगे के,
वस्त्र थे बने सु-वर्ग धागे के ।।९३।।

पहने वस्त्र कहीं गहने,
वाह ‘रे क्या कहने ।।९४।।

था विरला ही,
रुतबा सराफे का, अपने सा ही ।।९५।।

छिया, जिन्होंने जिया
खूब सूरत ऐसे बिछिया ।।९६।।

हटके कुछ विरली,
सुलोचना की ‘पगतली’ ।।९७।।

हुई लाल, हूॅं कम थोड़ी,
‘कि थोपी पायल जोड़ी ।।९८।।

आई क्रमश: खिसक-खिसक
दृग् जे नख तक ।।९९।।

कहे सा,
नख, न…नहीं,
‘ख’… आकाश भी मेरे जैसा ।।१००।।

खुश किस्मत दृग् निरखा नजारा,
आज तुम्हारा ।।१०१।।

बारहवां रंग

जै देव-देव,
पाऊँ जन्म-जन्म यू ही तुम सेव ।।१।।

प्रसिद्ध
गत, आगत, अनागत प्रणुति सिद्ध ।।२।।

और-नूर
जै जयतु जयतु जै, आचार्य सूर ।।३।

नव कोटितः वन्दन अनन्त,
श्री पाठी निर्ग्रन्थ ।।४।।

जै जै कारा
जै-जै-कारा
दैगम्बर माहन्ती धारा ।।५।।

और संभाल, दी डाल,
सुलोचना गले जै-माल ।।६।।

सकुचा जाती,
दृग् सुलोचना कुछ-कुछ लजाती ।।७।।

सभी चेहरे, वर-वधु ही नहीं,
थी छाई खुशी ।।८।।

मचाया वाद्य सभी धमाल,
हावी पै कर-ताल ।।९।।

जीजिये शरद् हजार,
नभ-गूँज उठे जै-कार ।।१०।।

जोर शोर से,
आने लगीं दुआएँ ओर ओर से ।।११।।

है ये आरजू मेरी,
महके खुशबू चार शू तेरी ।।१२।।

न पल को भी आये दुख,
पलकें बिछाय सुख ।।१३।।

उठ उठाओ सूर,
दे देर रात अंधेरे नूर ।।१४।।

अरमान छू सारे लो,
आसमान छू सितारे लो ।।१५।।

आ जाये गम खाना,
पा जाये गम यम ठिकाना ।।१६।।

सुर्ख़िंयों में
‘जि आप आ जाएँ दियों में,
नदिंयों में ।।१७।।

मायूसी,
दाबे न आपकी छाहरी, कभी खामोशी ।।१८।।

कक्ष दूसरी,
कर आप लें ‘कर’ अक्ष तीसरी ।।१९।।

आप भीतर जाएँ,
हो ‘कि यूँ आप भी…तर जाएँ ।।२०।।

चित्-चोर रेख,
आ खिंचे हाथ, रेख हंस विवेक ।।२१।।

आप पतंग
बखूब जमा सके, अपना रंग ।।२२।।

भिंटाओ ‘यूँ ही’ धवल पन,
यूँ ही रबर बन ।।२३।।

मुक्त छाहरी दो यूँ ही हर वक्त,
बन दरख्त ।।२४।।

जागते भी,
यूँ ही नैन पावे चैन, न ‘कि सोते ही ।।२५।।

पलक आँखों पे,
उठा-रक्खे जहाँ तुम्हें हाथों पे ।।२६।।

आँसू पोंछते,
रहो यूँ ही सभी का भला सोचते ।।२७।।

रहे ऊपरी,
गुस्सा घुस ना सके भीतर कभी ।।२८।।

जीतो अपने से,
‘लड़ाई’ अपनों से हार ‘जि ओ ।।२९।।

मंजिल पाओ,
बढ़ाया कदम न पीछे लौटाओ ।।३०।।

दिन दो गुनी,
उन्नति करो यूँ ही रात चौगुणी ।।३१।।

अपने हाथों में
कर लो दुनिया बातों-बातों में ।।३२।।

रात हो जाये,
लेते सुकूने श्वास, रात खो जाये ।।३३।।

न कांच, हीरे कहाओ,
अंधेरे में चमचमाओ ।।३४।।

न और लफ्ज़ छूना,
सिवाय इसके ‘के मैं हूँ ना ।।३५।।

बोलता रहे हर-वक्त,
कुँवर आपका वक्त ।।३६।।

जादुई छड़ी,
हाथ आपके लगे साधु ‘भी’ झड़ी ।।३७।।

माटी हो सोना,
छूते ही पत्थर, हो मोती सलोना ।।३८।।

खड़े हो जाओ जहाँ भी,
बैठा रहे न वहाँ कोई ।।३९।।

हिदायतें भी आईं,
बड़े-बुजुर्गों द्वारा भिंजाई ।।४०।।

एक खूबी है,
मन सूकूने शाम पनडूबी है ।।४१।।

‘आई’ बुराई जो,
हँसी उड़ा मन-की विदाई दो ।।४२।।

पुण्य से,
मिली दूजी ‘इन्द्रिय’
छठी और पुण्य से ।।४३।।

‘जी’ कई मोके देता है,
भई ‘जी’ न धोके देता है ।।४४।।

ज्यादा लाड़ ‘जी न करना,
दुश्वार जीना वरना ।।४५।।

हार में जीत दो ढुढ़ा,
और रोक लो मन-घोड़ा ।।४६।।

न कहो गंदा,
‘जी’ राम-नाम पानी राखिजो गंगा ।। ४७।।

स्प्रिंग ‘जी’ पड़े खींच रखना,
आये वही वरना ।।४८।।

डरपोक पै बने जबर,
जी… लो हाथ पकड़ ।।४९।।

गर्म लोहा ‘री,
पानी बटोरे मन त्यों जानकारी ।।५०।।

शतावधानी-पन,
न और किसी के नामे मन ।।५१।।

स्नेह जताये, ले नया ढंग,
करे न मन तंग ।।५२।।

टूट जुड़ न पाता,
मन-शीशे का गहरा नाता ।।५३।।

बच्चे सी बातें,
आ करते मन से, बन के बच्चे ।।५४।।

‘जि Art faul है,
मनवा-नर न ‘कि चंचल है ।।५५।।

मन-को छुआ कालापन,
छू हुआ ‘कि बालापन ।।५६।।

सारथी मन न, आत्मा हो,
मन्जिल परमात्मा जो ।।५७।।

मन की कभी करो प्रशंसा भी,
ये भी मास्टर-Key. ।।५८।।

कही ‘कि राजा बेटा,
कहीं भी मन आवाज़ देता ।।५९।।

न लाओ, छोड़ो भर,
साँस लायेगा मन भीतर ।।६०।।

मन दे…बता रास्ता नेक,
चुनने के लिये एक ।।६१।।

करना मन से नफरत,
मोल लेना आफ़त ।।६२।।

मन जिन्द है,
थमाते रहो नेकी तो आनंद है ।।६३।।

जा खोजा जहाँ दोई,
वफादार न मन-सा कोई ।।६४।।

लो मन-पे न राख,
मन करता, प्राय: मजाक ।।६५।।

मन शैतानी दे, बन शैतान,
तो…लो खींच-कान ।।६६।।

बस कहते ही इन्द्रियन,
होता वश में मन ।।६७।।

मैं जुदा, जुदा-मन,
मैला तो उस का ही दामन ।।६८।।

कर दो नाम नेक गाँठ,
खोलना मन का काम ।।६९।।

मन बूझता-पहेली,
भली सी दो ना कर सहेली ।।७०।।

जर्रा सा जुबां क्या उठाया,
मनवा भागता आया ।।७१।।

दाँतों को जोरों से भींचा,
चला आया ‘कि मन खिंचा ।।७२।।

है मनवा तो दीवाना,
क्या बातों में इसकी आना ।।७३।।

मन ठहरा जो अपना,
जीतने पड़े हारना ।।७४।।

जी साफ,
तभी
दरोगा साब आये न घर कभी ।।७५।।

ओ ! राखो बाँधे मुट्ठी,
मन साधो भी, न साधे चुप्पी ।।७६।।

लोक-निन्दा से पहले,
मन कहो न गन्दा भले ।।७७।।

भरो सब,
कि, रक्खो खाली मन,
आ सकें भगवन् ।।७८।।

जो फट जाता,
दूध-मन तो फिर न मिल पाता ।।७९।।

वक्त-आड़े जो आता काम,
उनमें मन का नाम ।।८०।।

जा दूर तक फैल जाता इत्र है,
मन मित्र है ।।८१।।

मन चल तो,
चल…
‘एक्टिव’ कह लो ‘डिटेक्टिव’ ।।८२।।

हुआ कहते कहते बुरा,
मन, आ…कहें बूरा ।।८३।।

आसान बड़ा मन जीतना,
बस आशा…न बढ़ा ।।८४।।

लिखने लागो,
‘मन-चल जो रहा’ कहे वो भागो ।।८५।।

थाम हाथ ले चलो तुम ना,
मनचाहा ‘घूम-ना’ ।।८६।।

मन थाम…ना, भागते परछाई,
थम जा भाई ।।८७।।

हो खड़े जाते, ‘सो’ घोड़े,
मन वक्त सोते भी दौड़े ।।८८।।

देर वगैर पैर,
‘आई’ मन को करना सैर ।।८९।।

थी किक-‘स्टार्ट’-सेल्फ स्कूटी है,
मन फेसेलिटी है ।।९०।।

चाँद अंधेरे रंग जमा सका है,
मन अच्छा है ।।९१।।

खोट से सोना, गहना हो सका है,
मन अच्छा है ।।९२।।

मिली जैसी, जी जैसी प्यारी सी माँ है,
मन अच्छा है ।।९३।।

सुनता, थोड़ा सा ऊँचा सुनता है,
मन अच्छा है ।।९४।।

छाँव छाता है, कभी भाव खाता है,
मन अच्छा है ।।९५।।

कपड़ा गन्दा हो, धुल तो जाता है,
मन अच्छा है ।।९६।।

गन्दा भी पानी, बुझा अग्नि आता है,
मन अच्छा है ।।९७।।

लगाता राख, नाक भी रखाता है,
मन अच्छा है ।।९८।।

जुगनुओं ने भी चीरा अंधेरा है,
मन अच्छा है ।।९९।।

बचपन छू पचपन रहा है,
मन अच्छा है ।।१००।।

पिये न बिल्वा तो, आता लुढ़का है,
मन अच्छा है ।।१०१।।

कोई हाजिर जवाबी साथी तो है,
मन अच्छा है ।।१०२।।

थोड़ा सा मीठा है, थोड़ा सा खट्टा है,
मन अच्छा है ।।१०३।।

थोड़ा सा पक्का है, थोड़ा सा कच्चा है,
मन अच्छा है ।।१०४।।

थोड़ा सा झूठा है, थोड़ा सा सच्चा है,
मन अच्छा है ।।१०५।।

थोड़ा सा मंजा है, थोड़ा सा मचा है,
मन अच्छा है ।।१०६।।

थोड़ा सा खोजी है, थोड़ा सा फौजी है,
मन अच्छा है ।।१०७।।

बच्चा है, थोड़ा सा रहता गुस्सा है,
मन अच्छा है ।।१०८।।

नाँच इशारे, कभी नचा रहा है,
मन अच्छा है ।।१०९।।

वरषा है, तो कभी मदरसा है,
मन अच्छा है ।।११०।।

साफ किसका है,
जिसका जैसा है मन, अच्छा है ।।१११।।

है-ना ओंकार,
रबर बेखबर मन, अच्छा है ।।११२।।

मेरे नाम से बदनाम-शुदा है,
मन अच्छा है ।।११३।।

लगाये कान ‘न’ कानों का कच्चा है,
मन अच्छा है ।।११४।।

नई नई दे…बता कई रस्ता है,
मन अच्छा है ।।११५।।

कर दो पूरी जर्रा सी तो इच्छा है,
मन अच्छा है ।।११६।।

जर्रा सा होना अच्छा, बाकी बचा है,
मन अच्छा है ।।११७।।

बहुत थोड़े धंधे-अंधे फँसा है,
मन अच्छा है ।।११८।।

किसी ने भी, न कभी टोका-टाँका है,
मन अच्छा है ।।११९।।

बन्द भी, ‘घड़ी’ दो सही दे…बता है,
मन अच्छा है ।।१२०।।

मणि भी जिस… फन… विष रक्खा है,
मन अच्छा है ।।१२१।।

चूहा ले बिल्ली, मुख उसी बच्चा है,
मन अच्छा है ।।१२२।।

माना खोटा है, पे चलता सिक्का है,
मन अच्छा है ।।१२३।।

काँटों से छाया, गुलाबों का गुच्छा है,
मन अच्छा है ।।१२४।।

क्या चेहरे पे तिल दाग-धब्वा है,
मन अच्छा है ।।१२५।।

दागदार भी, दिल छाया चन्दा है,
मन अच्छा है ।।१२६।।

रवि, न कवि,
पहुँचे वहाँ मन, अभी के अभी ।।१२७।।

मन समझे भाषा प्यार की भी,
न ‘कि मार की ही ।।१२८।।

देख ‘री चश्मा उतार,
सरल ‘जी’ सा न उदार ।।१२९।।

जी करे बन्द करना परेशान,
खींचे क्या कान ।।१३०।।

खूब आता ‘जी’ करना,
मोल-भाव कर देख ‘ना’ ।।१३१।।

करे सवाल,
जी रक्खो ‘लाजबाब’ हाल के हाल ।।१३२।।

और दामन, दिखा दाग दो,
मन बाग-बाग हो ।।१३३।।

हो दाढ़ी चोर, चूँकि तिनका,
लुटे चैन मनका ।।१३४।।

श्वान मनवा,
देखा नहीं ‘कि मल हुआ बाबरा ।।१३५।।

देख अंजाम,
मन ! करने योग्य कर लो काम ।।१३६।।

लो पलक तो पलक झाँप,
आये ‘जी’ आपे-आप ।।१३७।।

प्रायः आ आप जाये म…न,
न…म जो जायें अपन ।।१३८।।

‘जी’ चंचलता लगे कॅंपनी,
लेते ही सुमरनी ।।१३९।।

हाथ से, आँख से पहले मन,
दे छुवा गगन ।।१४०।।

दिया, नदिया
समाये गुण जिया ऋद्धि विक्रिया ।।१४१।।

ठग ‘मनवा’ रहा बात,
तो कहना हाथ, न… बाबा ।।१४२।।

अमोल, कोई, जहाँ दोई, तो आँसू
यूँ ही न ढ़ोल ।।१४३।।

लो बढ़ाने को होते चरणा,
दोनों जै सुलोचना ।।१४४।।

और रुक के,
माता-पिता के छूते पैर झुक के ।।१४५।।

झुक बीच में ही रोक लिया उन्हें,
माता-पिता ने ।।१४६।।

बोले श्वसुर जी,
नहीं और,
यहीं एक अरजी ।।१४७।।

बड़े नाजों से
टुकड़ा-ए-जिगर
है पाला इसे ।।१४८।।

जाने जमीं,
न रक्खी परवरिश में कोई कमी ।।१४९।।

चाँद-तारे भी माँगे,
रख दिये ला, तोड़ के आगे ।।१५०।।

भाँत अलक सँवारा,
न पलक नीचे उतारा ।।१५१।।

छुई-मुई सी,
हमें अभी भी, बच्ची हुई अभी की ।।१५२।।

जहाँ दोई,
न सिवा हमारे और इसका कोई ।।१५३।।

या फिर अब,
हो इसके गये हो, आप ही सब ।।१५४।।

परी हमारी,
‘हुई तुम्हारी आज से’ जिम्मेदारी ।।१५५।।

रखना इसे सँभाल,
नादाँ ही ये अभी प्रवाल ।।१५६।।

चल सकती अटपट है,
थोड़ा नटखट है ।।१५७।।

पहले से ही माँगते माफी,
होवे माफ गुस्ताखी ।।१५८।।

जुड़े उनके हाथ,
रखा लिये जै ने सिर-माथ ।।१५९।।

और विनय साथ,
बोला जै, जोड़ अपने हाथ ।।१६०।।

आप तो बस आशीष दें,
सहज कर्त्तव्य सधें ।।१६१।।

हम कदम न वो उठाये,
दिल आप दुखाये ।।१६२।।

बोल पड़ी ले दृग् आँसु,
तभी नाम सुप्रभा सासु ।।१६३।।

दुआएँ, शुभ कामनाएँ हमार,
साथ तुम्हार ।।१६४।।

अय ! नेक दिल,
चूमे कदम तेरे, तेरी मंजिल ।।१६५।।

मेरी है दिली तमन्ना,
हो अपना, तेरा सपना ।।१६६।।

भरी खुशिंयों से रहें,
झोरी तेरी, हैं दुआ मेरी ।।१६७।।

हैं मेरे दिल की आरज़ू,
हमेशा खुश रहे तू ।।१६८।।

हो जावें पूर्ण सम्पूर्ण काम,
आप पावें मुकाम ।।१६९।।

दें बना समाँ सावन,
आ खुशिंयाँ आप आँगन ।।१७०।।

जहाँ जै, वहाँ से शुरु गिनती हो
विनती प्रभो ।।१७१।।

करे जै स्नेह-बारिस,
ना ‘कि साजिश, यही ख़्वाहिश ।।१७२।।

हो जड़ा पन्ना,
किताब ए जिन्दगी तिरा… तमन्ना ।।१७३।।

रहे ‘कि जोड़ी सलामत,
की दोनों ने इबादत ।।१७४।।

जिनाभिषेक किया,
जै सुलोचना ने देख लिया ।।१७५।।

प्रक्षालन
जै-सुलोचना ने किया देवाराधन ।।१७६।।

गयो चमक गंदो ‘लक’,
लगाते ही गंधोदक ।।१७७।।

टूटने को ही बंधन,
अरिहन्त तिन्हें वन्दन ।।१७८।।

शाम-शाम, पा लिया मुकाम,
सिद्ध तिन्हें नन्त प्रणाम ।।१७९।।

खेवे निर्दाम,
नैय्या ‘शिव’ खिवैय्या, सूर प्रणाम ।।१८०।।

मेंटें अंधेरा,
उपाध्याय वे, तिन्हें वन्दन मेरा ।।१८१।।

जगत् रहते जगत सदा
सन्त तिन्हें सजदा ।।१८२।।

दे ‘दिया’ न क्या दिया थमा,
आगम वो नमो नमः ।।१८३।।

समाँ दर्पण
संवरने प्रतिमा देव-दर्शन ।।१८४।।

पापों का क्षय,
छू दूर-सुदूर से भी देवालय ।।१८५।।

सूनी हृदय वेदी हमार,
आप का इंतजार ।।१८६।।

स्वीकार जल झारी,
दीजो बदल दुनिया म्हारी ।।१८७।।

चैनो-अमन पाने आये,
चढ़ाने चन्दन लाये ।।१८८।।

बागवाँ !
सुधाँ छू लीजिये, दीजिये छुवा आसमाँ ।।१८९।।

शिव बगिया में झूमने गाने,
लायें पुष्प चढ़ाने ।।१९०।।

चढ़ाऊँ थाल पकवान,
भुलाऊँ ‘कि बक ध्यान ।।१९१।।

ज्योत भिंटाऊँ,
शिव तक जाये ‘कि पोत पा जाऊँ ।।१९२।।

भेंट ‘शरण-वेवजह’ !
चरणों में धूप यह ।।१९३।।

पाने आप से तीजे दृग् सीले,
भेंटूॅं फल रसीले ।।१९४।।

प्यारा सपने सा,
भेंटूॅं अर्घ, कर लो अपने सा ।।१९५।।

एक आपका सहारा,
बिन आप न कोई हमारा ।।१९६।।

बुरी नज़र से,
‘बच्चे हम’ तेरे ही शुकर से ।।१९७।।

लेते ही नव-देव नाम,
बनते बिगड़े काम ।।१९८।।

देते ही नव-देव शाम,
संकट काम तमाम ।।१९९।।

खेते ही ‘नव’ देव-राम,
मंजिल ले हाथ थाम ।।२००।।

सत्य दे…बता
और कौन ? सिवाय नव देवता ।।२०१।।

शिव दे…बता,
और कौन ? सिवाय नव देवता ।।२०२।।

सुन्दर भी दे…बता,
और क्या ? सिवा नव देवता ।।२०३।।

अपना बना लो,
शरणा नो-देव ओ ! अपना लो ।।२०४।।

दीनी सभी ने फर्सी सलामी,
रही मेंटने खामी ।।२०५।।

मैं दोगला
श्री जी मैं… दो… गला
बस यही ख़्वाहिश ।। २०६।।

न कहीं खून,
फैले जहाँ में हर कहीं सकूँन ।।२०७।।

पा जाये रोटी, कपड़ा, और मकाँ,
ये सारा जहाँ ।।२०८।।

बस आरजू,
ये भू, आँसू किसी के भी न पाये छू ।।२०९।।

भगवन् ! भर होंसले दो,
काफिले छीन भले लो ।।२१०।।

कहते अ, सि, आ, उ, सा नमो नमः
दी परिक्रमा ।।२११।।

मर…हम
श्री जी मरहम बने,
प्रार्थना सुने ।।२१२।।

नेंग-दस्तूर अनूठे,
आये सभी, कोई न रूठे ।।२१३।।

पाणि, ले पानी,
पिता ने दान किया टुकड़ा जिया ।।२१४।।

‘जि गठ-जोड़
बन्धन-कंकण न कम बेजोड़ ।।२१५।।

जमा रहे थे, अपना रंग गीत,
संग संगीत ।।२१६।।

काशी राज ने संपद् अपार,
साथ दी तलवार ।।२१७।।

एक सुन्दर सा घोड़ा भी,
दिया सद्-ग्रन्थ जोड़ा भी ।।२१८।।

दहेज जल-बर्सात,
स्वीकारता जै कूप भाँत ।।२१९।।

अहा ! उद्यान
था जहाँ मुनि संघ विराजमान ।।२२०।।

सन्त क्या नहीं देते मुफ्त,
खुशबू दे मात्र इत्र ।।२२१।।

कहते कब हैं
जानते सब हैं, सन्त रब हैं ।।२२२।।

जा वहाँ,
एक साथ की वन्दना, तत्पश्चात् कहा ।।२२३।।

आये चरण में,
ले लो हमें गुरु जी शरण में ।।२२४।।

करे जीवन-नव प्रवेश,
दीजे धर्मोपदेश ।।२२५।।

अरिहंताणं णमो,
सिद्धाणं णमो,
साहूणं णमो ।।२२६।।

नौकार मंत्र,
सहज-निराकुल पढ़ते सन्त ।।२२७।।

सुनो, दुबारा जो पढ़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२२८।।

अंधा ‘ले-दिया’ जो बढ़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२२९।।

नक्शा ले साथ जो बढ़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३०।।

जुबाँ मिसरी जो रखता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३१।।

चींटी-सा सही जो चलता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३२।।

हवा में बर्फ निकलता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३३।।

पान जो एक भी सड़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३४।।

भाग बागवाँ जो लिखता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३५।।

उलझ माँजा जो सुलझता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३६।।

रोज रियाज जो करता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३७।।

गाँठ जुलाहा जा गढ़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३८।।

डर डर के जो डरता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२३९।।

आँखों में शर्म जो रखता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२४०।।

लड़का लाड़ का जो लड़ता है,
‘फर्क तो पड़ता है’ ।।२४१।।

रख शबरी-शबर,
राम तेरे आयेंगे घर ।।२४२।।

रख शबरी-शबर,
ज्यादा डर की न उमर ।।२४३।।

रख शबरी-शबर,
पतझर, खुशखबर ।।२४४।।

रख शबरी-शबर,
कई साँझ पहुँचे घर ।।२४५।।

रख शबरी-शबर,
फले ऋतु पा तरुवर ।।२४६।।

रख शबरी-शबर,
आती भाव खाती हुनर ।।२४७।।

रख शबरी-शबर,
नजर, तो है ना काजर ।।२४८।।

रख शबरी-शबर,
छोर कई छूते उत्तर ।।२४९।।

रख शबरी-शबर,
बुजुर्गों का हाथ पकड़ ।।२५०।।

रख शबरी-शबर,
हों एक-से न दिन-हर ।।२५१।।

रख शबरी-शबर,
हैं भूलें, तो है ना रबर ।।२५२।।

रख शबरी-शबर,
हवा लाती होगी खबर ।।२५३।।

रख शबरी-शबर,
‘दिया’ जागा भागा अन्धर ।।२५४।।

रख शबरी-शबर,
सबकी है उसे खबर ।।२५५।।

रख शबरी-शबर,
पाँव-पाँव ख़्वाब सफर ।।२५६।।

रखना नम, ‘नयना’ शरम,
न और धरम ।।२५७।।

रखना जुबाँ नरम,
दूसरा न जवां धरम ।।२५८।।

देख जखम,
बनना मरहम, नेक धरम ।।२५९।।

खुशिंयाँ ‘बाँट आना’ गम,
दूजा न और धरम ।।२६०।।

कोसे कपड़ा,
फादर मदरसे क्या यही पढ़ा ।।२६१।।

निर्मदा,
तभी नरम…दा कंकर हर शंकर ।।२६२।।

धर्म देशना बाद,
पा धर्म-वृद्धि का आशीर्वाद ।।२६३।।

वे धीमे-धीमे डग,
रख चले भींगे-भींगे दृग् ।।२६४।।

करता यहाँ इंतजार,
भोजन जायकेदार ।।२६५।।

बघरी नीम-मीठी दालें,
मुॅं…लग दिल चुरा लें ।।२६६।।

अनोखी लौकी,
लव यानी प्यार की,
‘की’ यानी चाबी ।।२६७।।

बनाने वाली लकी,
‘गिल्की’ चुराने वाली दिल की ।।२६८।।

लोप जो कर दिया ‘अ’ का
जमा…ना
‘अ’पर-बल’ ।।२६९।।

‘काटे-मुश्किल,
‘रखे’ प्रश्नों के हल,
वो कटहल ।।२७०।।

वो कद्दू सखे !
जो कुछ कुछ
कद ऊँचा सा रखे ।।२७१।।

बड़भाग !
हैं ‘करै’, ला…कह रहे हैं लोग-बाग ।।२७२।।

नजरे-म’म्मी…रची’-पची,
पेट की डॉक्टर अच्छी ।।२७३।।

दूर से ही था रहा पुकार भर,
‘अ…नार’ नर ।।२७४।।

नाम का ‘आम’
ख़ास ही नहीं, खासमखास ।।२७५।।

छुड़ाने छक्के भूख के,
साथी ऐला, काफी अकेला ।।२७६।।

जीतने वाले दिलों के,
रस ऋत-ऋत फलों के ।।२७७।।

केशर खीर, मटर पनीर,
था ही ठण्डा नीर ।।२७८।।

पूरन पूरी थी, गरमागरम थी,
नरम भी ।।२७९।।

जादू ..
तनाव, कर देने वाला छू ताव
‘पुलाव’ ।।२८०।।

अभी अभी
गो घृत लासानी चुरी
वो पानी पुरी ।।२८१।।

सोन पपड़ी थी,
ककड़ी थी, कड़ी थी, रबड़ी थी ।।२८२।।

मीठा बादाम था,
मिठुआ जाम था, फल-राम था ।।२८३।।

चूड़ा था, बड़ा था,
रायता था, मठा था तड़का था ।।२८४।।

क्यों होगी कब्जी,
थी बनाई मिला के चीजें सब…जी ।।२८५।।

लजीज जो न थी
आहा…हा ! ऐसी वो चीज कौन सी ।।२८६।।

खिलाने वाले भी,
‘दिलदार’ सभी खाने वाले भी ।।२८७।।

मनुआ भर,
खाया सभी ने न ‘कि पिटुआ भर ।।२८८।।

बेशकीमति तोहफा,
दे पाहुनों को किया बिदा ।।२८९।।

वे जाते जाते कह ‘गै’
जुगो… जिओ सुलोचना-जै ।।२९०।।

तेरहवां रंग

हाय ! पाँसों ने पलटी खाई,
आई बेला बिदाई ।।१।।

विनत माथ,
लेते सभी से आज्ञा जै जोड़ हाथ ।।२।।

खामोश वैन,
किये अपने सभी ने नीचे नैन ।।३।।

लो वह चलीं अश्रु धारें,
जा जो जै-पाँव पखारें ।।४।।

था नमकीन जो
माहौल हुआ हा ! गमगीन वो ।।५।।

पा पहाड़ सा सर-गम,
बेबाक थी ‘सरगम’ ।।६।।

खड़ी कर्त्तव्य विमूढ़ शिरनाई,
‘री शहनाई ।।७।।

चारण भाट,
थे खड़े ऐसे, जैसे हो लुटा हाट ।।८।।

पाय पवन,
खुश्बू सुमन,
थी दे रही चुभन ।।९।।

यदपि नीके,
भित्ति-चित्र लगने लगे थे फीके ।।१०।।

सुलोचना रो पड़ी,
जल दृग् बुँदें ले बड़ी-बड़ी ।।११।।

माँ भी फबक-फबक के,
रो पड़ी उसे लख के ।।१२।।

आपा खो दिया,
पिता जी ने भी देखा उसे, रो दिया ।।१३।।

ऐसा कौन था,
‘जो न रो रहा’ कौन ऐसा कोन था ।।१४।।

यूँ काफी पल बीते,
तो बुजुर्गों ने कहा दृग् तीते ।।१५।।

चलो… हो रही है देर,
मंजिल भी रही है हेर ।।१६।।

लो और फूट-फूट कर,
रो पड़ा घर नगर ।।१७।।

माँ हिदायते-सौगात,
आ थमाती बिटिया हाथ ।।१८।।

काना फूसी से,
लाडो ! रहना बच के जासूसी से ।।१९।।

पिया के पीछे-पीछे चलना,
आगे न निकलना ।।२०।।

बात मानना,
‘बड़ों की’ न करना अवमानना ।।२१।।

ताँकी-झाँकी से,
‘लाडो, जर्रा बच के’ टोका-टॉंकी से ।।२२।।

न लेना रस ‘री, छींटा-कसी,
न ही छीनना खुशी ।।२३।।

कहे ही ना…री,
लूॅं देख मीन-मेख, बन ‘जी’ नेक ।।२४।।

लेटना,
गई ‘आधी-रात’ रही ‘कि उठ बैठना ।।२५।।

उत्पथ पद,
रखना न अपना गलत-लत ।।२६।।

ढ़ाई आखर न विसरना,
बस चले चलना ।।२७।।

बाती जगाना,
अंधेरा भगाने न लाठी उठाना ।।२८।।

दो पकड़ाये कोई,
पकड़ लेना हाथों से दोई ।।२९।।

सुनाना मत सुन लेना,
सुमन वाक् चुन लेना ।।३०।।

क्षण हो बुरा
दिवस, बरस न जीवन पूरा ।।३१।।

लेते रहना रोज ‘धूप भी,
स्रोत विटामिन-‘डी’ ।।३२।।

मत करना,
गल्तियाँ हो जायें, तो रबर है ना ।।३३।।

रखो सफाई,
चरण आचरण दर्पण भाई ।।३४।।

कस्तूरी पीछे हिरणा का मरना,
याद रखना ।।३५।।

न ‘री भुलाना
पंख से परिंदें का
नदी सुखाना ।।३६।।

गिनो बिंदिंयाँ आकाश,
न आये जो निंदिया पास ।।३७।।

था काम आया चूहा,
‘न भुलाना’ जीता कछुआ ।।३८।।

रखना बचा के पानी,
है पानी तो है जिन्दगानी ।।३९।।

भाषा कर्तनी न बोलना,
पहले गाँठ खोल ना ।।४०।।

न भुलाना…
खा पत्थर, दरख़्त का फल खिलाना ।।४१।।

खुशनसीब हैं वो
रहते खुश…नसीब से जो ।।४२।।

भले काली,
न दिल कोकिल किस-किस हरने वाली ।।४३।।

खड़े लाईन में होना,
भले थाम पीछे का कोना ।।४४।।

सिक्के, स्लेट की साईड दूजी कोरी,
देख ‘री गोरी ।।४५।।

भले ले लेना,
‘तकल्लुफ’ न कभी किसी को देना ।।४६।।

बचने हॉंपी से
रहना सुदूर आपा-धापी से ।।४७।।

भली न ज्यादा आजादी,
बनना गो ‘री सीधी-सादी ।।४८।।

न छीन आना खुशी,
किसी की नाहिं उड़ाना हँसी ।।४९।।

दोनों पैरों के बल,
कभी नापना ना ‘री दलदल ।।५०।।

पड़ता ढ़ेर माटी ढ़ोना,
यूँ ही न मिलता सोना ।।५१।।

मत ठानना बुराई,
भले कर लेना लड़ाई ।।५२।।

हो ही जातीं हैं,
भूले नहीं भूले तो, खो भी जातीं हैं ।।५३।।

गंध चन्दन ने दी,
घिस-पिस दे रंग मेंहदी ।।५४।।

जाये बिखर,
उठाते ही नजर विपद्-शिखर ।।५५।।

साँस सी,
सास बिन ‘री जीवन की कल्पना कैसी ।।५६।।

चाहते रिश्ते टूटना,
दे टूटने न वेत-पना ।।५७।।

ऐसे कदम ही न उठाना,
पड़े ‘कि पछताना ।।५८।।

सादा जीते जो,
जीवन कुछ आसाँ-ज्यादा जीते वो ।।५९।।

कहें बुलंद हौंसले,
‘रे ज़र्रा सा जगा होश ले ।।६०।।

दुआएँ देना,
गुर कहाँ ‘बच्चों में’ बुजुर्ग है ना ।।६१।।

चौदहवां रंग

भेंटते पिता,
नेक-सूत्र-अनेक हित दुहिता ।।१।।

है ‘मदर…सा’
दुनिया कर मुट्टी में लो, ले शिक्षा ।।२।।

औरों की कर माफ,
गल्तिंयाँ निजी लो कर साफ ।।३।।

करना ‘काम अपने अशेष ‘री’
करे केशरी ।।४।।

फूल ‘राहों में देख’ शूल,
न जाना भगवन् भूल ।।५।।

अपने काम काम रखना,
राम-राम जपना ।।६।।

ऐसा कर न आना काम,
धरे ‘कि जमाना नाम ।।७।।

हर ताले की चाबी है,
डग आगे कामयाबी है ।।८।।

नाग दिखाता जोर,
दबा ‘कि आँख दिखाता चोर ।।९।।

दे आपस में जगह,
सुई धागे करें फतह ।।१०।।

खा के गम, पी गया गुस्सा,
अपना, कौन उस सा ।।११।।

आ बाजी मारें,
अपनों से जीत के तो बाजी हारें ।।१२।।

लक…’री राखे,
कोई भी, कम नहीं, लड़…’की राखे ।।१३।।

क्यूँ घबड़ाते,
जगह-जगह तो ‘यूँ-टर्न’ आते ।।१४।।

बिखराये न रोशनाई कम,
ले स्याही कलम ।।१५।।

हुआ, अन्छुआ सा,
सुनहरा-कल से आज मेरा ।।१६।।

कब चाबियों ने,
खोले ताले, कब न हौसलों ने ।।१७।।

उसका चेहरा बाद,
‘काला’ पहले अपना हाथ ।।१८।।

सुनो, जो कस …मैं पाता,
वही निभा कसमें पाता ।।१९।।

न लौट आना,
बन्द पा दरवाज़ा धकाये बिना ।।२०।।

आके पलकें झापें,
एक नाजुक देख ये आँखें ।।२१।।

रक्षक जुवां, बत्तीस मुस्तैद,
न ‘कि जुबां कैद ।।२२।।

घुटने यूँ न राहों पे टेक,
नदी भागे वो देखे ।।२३।।

झंझट एक
‘सर’ पनिहारिन तो घट देख ।।२४।।

हार बताती,
जंग और तरीके से जीती जाती ।।२५।।

मुस्कान ‘दिये’ बिना
कोई बने तो कैसे अपना ।।२६।।

मिल के चार धागे,
निकल आते बहुत आगे ।।२७।।

फल–फल में भरे बीज,
अजीज हरिक चीज ।।२८।।

टगे डालों पे घोंसले,
तू तो जमीं, रख हौंसले ।।२९।।

पा रहे खुशी और गम वो,
चाह रहे हम जो ।।३०।।

बदल… लूँगा-बदल,
मैं, जीत में, हार के पल ।।३१।।

हैं काफी कुछ देव,
बनें मानव पे…महादेव ।।३२।।

जैसी, दे वैसी आवाज दे दुनिया,
‘बाबरी’ मियाँ ।।३३।।

जो दुखाये न दिल
‘और’ कौन वो पाये मञ्जिल ।।३४।।

चश्मा और का,
बनाने वाला काम है न और का ।।३५।।

‘पास’ उनके पास भी,
दिन घण्टे थे चौबीस ही ।।३६।।

हा ! मौलिकता खोना,
बन किसी के जैसा बनो ‘ना’ ।।३७।।

देखों आईने में, दिखे जो,
सबसे सुन्दर है वो ।।३८।।

बोझ नाक लें गवा ही,
सु…मन दें फिर गवाही ।।३९।।

सच दूसरी पढ़े,
सु…मन कद के होते बड़े ।।४०।।

उधेड़ बुन,
न आये सु…मन, लूँ छोड़ ये चुन ।।४१।।

बीच काँटों के रहे मुस्कुराते,
सु…मन बताते ।।४२।।

निबोली लागे मीठी कागा,
बुरा न कोई अभागा ।।४३।।

बुरी जिदें लो ‘हार्डली’,
अच्छी जिदें लो ‘हार्टली’ ।।४४।।

चाहिये ‘हार’ ना,
हो खास अपनों से जो सामना ।।४५।।

हा ! कड़ी एक भी,
‘हुई कमजोर’ ‘कि जंजीर ही ।।४६।।

प्रायः हालात गलत,
भाया न ‘कि बात गलत ।।४७।।

बड़ी सौगातें,
होती अपनों को दीं मीठी दो बातें ।।४८।।

प्रतिशोध दे सुकूँ पल का,
क्षमा करे ‘जी हल्का ।।४९।।

न भाला भला सीधा भी,
टेड़ापन कला वीणा की ।।५०।।

सँभल,
जल्द ही, दुश्मन पैंतरे देते बदल ।।५१।।

जब बनेंगे, बनेंगे अपने ही
हाथ दाहिने ।।५२।।

मत सुनना,
चुगली-चुगना भी मत चुनना ।।५३।।

रिश्ते बरफ से,
बनाये रखना मुश्किल बड़े ।।५४।।

वैसे कड़वी,
केशर पर भाई न किसे बड़ी ।।५५।।

सलीका काम,
और सुन्दरता पे दे लिक्खा नाम ।।५६।।

हुआ ही कौन सन्तोषी,
पाये बिना चर्या सन्तों सी ।।५७।।

सँभल, रंग-दिल चढ़ा ना,
संग-दिल जमाना ।।५८।।

बच-बच के चलने पे भी काई,
दे ही गिराई ।।५९।।

गो’री कोठरी काजल,
न लौटाये कोरे आंचल ।।६०।।

विश्वास पुन: पुन: जमाना,
राई पे राई दाना ।।६१।।

बट्टा चाहिये,
सुुवर्ण चलन में लाने के लिये ।।६२।।

सोना जितना,
‘फैलता जाता’ नोना-पन उतना ।।६३।।

अ’जि’ Image कह रही खुद ही,
I ‘m age ।।६४।।

जख्म जाते हैं भर,
इस…टोन ( S…tone ) के नहीं, मगर ।।६५।।

Alert
स्थिति वो जहाँ पे पाई जा सके,
All….Art ।।६६।।

भूख से कम आहार लो,
न कभी भी बीमार हो ।।६७।।

मील अनेक,
यात्रा हो शुरु बढ़ा कदम एक ।।६८।।

नाखूँ बड़े, खूँ मड़े,
कह दोस्त दूँ, तुम्हें किस मुँ: ।।६९।।

वृद्ध बदले ढ़ोक के,
बादल दें छटा शोक के ।।७०।।

कखहरा है धर्म का, वृद्ध सेव,
आ पढ़ें बढ़ें ।।७१।।

होगी गिफ्ट ये अमोल,
‘पर्स’ न दें, दें जुबाँ खोल ।।७२।।

‘वा…नर’ भ्रात,
अटकी न मटकी अटका हाथ ।।७३।।

पाँखी कर न सकोच,
छीने काफी कुछ संकोच ।।७४।।

जीना,
रखना बन्द, मुट्ठी रखना खोल, मरना ।।७५।।

धी पाने कछु…आ,
सोयें देर, ‘कछु’ जागें सबेर ।।७६।।

बन्द मुट्ठी का कहना
हथोड़े से हम कम ना ।।७७।।

पी पानी पल अगले
सोचा तो, जुल्मी हमीं निकले ।।७८।।

लोढ़ा न फेंको,
‘रे अपनो जी सोई काँच को हैगो ।।७९।।

करो न हाथ करिया,
रोहों नातो धोतीं बिरिंया ।।८०।।

जिससे डरो,
सब छोड़ ‘काम वो’ पहले करो ।।८१।।

घर चौखट बाहर बढ़,
बात हो बतंगढ़ ।।८२।।

नैन आईने दिल के,
आमद क्या होंठ-सिल के ।।८३।।

मत बुलाओ,
बन काम के जाओ, ताँता लगाओ ।।८४।।

आँख आईने, मूँद दिखने वाले,
‘हम’ निराले ।।८५।।

बात न बढ़ा,
भार बात का बढ़ा, बात को बढ़ा ।।८६।।

पहुँच पाथ
केन्द्र के, एक नहीं तीन सौ साठ ।।८७।।

न आने वाला ‘कल
गुजरा’ जी लो जी भर आज ।।८८।।

न खोना धीर,
फटे क्षीर तो, बना लेना पनीर ।।८९।।

हो नासिका न भारी,
तो हर-चीज सिखाने वाली ।।९०।।

खुशी से,
दीप से जलना, जलना मत किसी से ।।९१।।

चुगली मत खाना,
गम खाना ‘री मत भुलाना ।।९२।।

बाजी मारने ‘वाला’
‘कदम’ कम हारने वाला ।।९३।।

ले क्या जाती है,
कहो हार सीख क्या दे न जाती है ।।९४।।

कपड़े चुस्त बड़े,
करते रोड़े खूॅं-रस्ते खड़े ।।९५।।

माटी पे माटी से माटी लिख आना,
दोस्त बनाना ।।९६।।

पानी पे पानी से पानी लिख पाना,
दोस्ती निभाना ।।९७।।

‘री समाँ पंछी,
‘पर’ अपने पर रखना यकीं ।।९८।।

चल सँभल,
रक्खें सभी नजर, घर-बाहर ।।९९।।

अहो ! न कहो, कोई न देख पाया,
अंधा न साया ।।१००।।

पुनः संबंधों ने पा सावन झाँका,
जीवन शाखा ।।१०१।।

विहँसो गम,
खाली तो हों शायद हासिये हम ।।१०२।।

नहीं देना खो
किसी सा बन, देखो अपना पन ।।१०३।।

कोई न होता बुरा,
सब ये चश्में का किया धरा ।।१०४।।

न रूठे रूठ के,
‘बाल अच्छे है’ न टूटे टूट के ।।१०५।।

‘जी न,
उठाई अगुँली उठीं ओर-अपनी तीन ।।१०६।।

‘री छिद्रों का हो देखना,
तो जा दूर-थोड़ी देखना ।।१०७।।

फिर लाञ्छन लगाना,
देख मुख दर्पण आना ।।१०८।।

बने तो आना सुधार,
गल्लिंयाँ न आना निकाल ।।१०९।।

चढ़ सु-‘राही’ सर,
ढ़क्कन कभी न पाया भर ।।११०।।

हमीं करने वाले खता,
रहें न जमीं देवता ।।१११।।

अपनी ढ़ेर कीं,
भूले-ढ़ेर कर देखो गैर भी ।।११२।।

पा पंख उड़ ले,
चींटी गवा पंख चल-फिर ले ।।११३।।

पैर साँप के साँप की पाये हेर,
न दृग् तरेर ।।११४।।

बहाने फूल के,
पा जाते पूज्यता कण धूल के ।।११५।।

यूँ ही नादान खोते हैं,
अश्रु कण मोती होते हैं ।।११६।।

हाँ और सुनो रोना मत,
लिखना रोजाना खत ।।११७।।

पन्द्रहवां रंग

लो सुलोचना चाली वहाँ,
बुज़ुर्ग विराजे जहाँ ।।१।।

धार दृग् मोती ढ़ार,
चरण तिन लेती पखार ।।२।।

आँखों से,
दिया बुजुर्गों में आशीष दोनों हाथों से ।।३।।

दी साथ-साथ दुआएं,
नेक हाथ-हाथ शिक्षाएँ ।।४।।

सूखे श्रीफल
‘बनो तो बनो’ जल-भिन्न कमल ।।५।।

भले ‘हेवी’
न रहेगा काम हावी, लो बना हॉवी ।।६।।

जो जरूरते घटाता,
जरूरत से ज्यादा पाता ।।७।।

पौधे से रिश्ते नाते,
ध्यान न दें, तो मुरझा जाते ।।८।।

लौटे तो लगे न फीकी,
बात राखो इतनी मीठी ।।९।।

पहले करे मजाक,
बाद जमा…ना, देता दाद ।।१०।।

रो के बढ़ाया जाता,
दुख, हॅंस के भुलाया जाता ।।११।।

न उबल,
पा उपल, भॉंत जल, रस्ता बदल ।।१२।।

कितना भी लो छुपा,
जुर्म चेहरे पे होता छपा ।।१३।।

न चपट ही बेटी !
चाकलेट भी समझा लेती ।।१४।।

पानी बचाना,
सफाई दे…ना वक्त ने खूब जाना ।।१५।।

दुआ पे भारी बददुआ,
किसी का दिल न दुखा ।।१६।।

एक दो तीन या चार
‘आँखें मेरी’ ओर हजार ।।१७।।

वापिस पुनि वैसा का वैसा,
प्रेम प्रतिधुनि सा ।।१८।।

खोने वाली न अब सुई,
‘कि दोस्ती धागे से हुई ।।१९।।

वक्त को भी दो अवसर,
न खपा अपना सर ।।२०।।

इरादे नहीं, लेना तरीके बदल,
होने सफल ।।२१।।

श्वास श्वास का
फायदा उठाना पै न विश्वास का ।।२२।।

किसी में कोई खूबी पाना,
जा लगा तमगे आना ।।२३।।

रोपना एक पौधा,
बड़े फायदेमंद ये सौदा ।।२४।।

सभी पढ़ते जो कच्ची पहली,
न भली चुगली ।।२५।।

न तांक-झांक वैद्य राह,
पशु पाखी लें निद्रा पनाह ।।२६।।

देख फायदा,
मन फेरे वायदा, धका कायदा ।।२७।।

खुशबू जश, दे भिजा कोन-कोन,
विनय पौन ।।२८।।

पड़े बढ़ानी,
‘विशुद्धी’ घट स्प्रिंग सी आप ‘जानी’ ।।२९।

भले न हाथ खुशिंयाँ,
दे सकते पै हाथो-हाथ ।।३०।।

लौटती होके कई गुना,
खुशिंयॉं सभा गेंहू ‘ना’ ।।३१।।

जो बॉंटे ‘खुशी’
फसल और कौन वो काटे खुशी ।।३२।।

आप आप में,
लोगों की दिलपस्पी, न ‘कि आप में ।।३३।।

बीच पत्थर दो क्यों पड़ना,
पड़ा रुई जलना ।।३४।।

चप्पू अमोल दो,
घुमाये नौ गोल-गोल एक तो ।।३५।।

है ना कितना अनूप,
चन्दन का धुआं न, धूप ।।३६।।

जल बीच ले खींच हाथी,
‘मगर’ न थल बीच ।।३७।।

सीख ‘मॉं न’दी,
भले मुश्किलें, कभी लौटना नहीं ।।३८।।

रह न पाई संयत पगली,
लो छली मछली ।।३९।।

अफसोस,
छू पाया संयतपना न खरगोश ।।४०।।

छुआ कछुआ फतह,
‘री संयत मन वजह ।।४१।।

संपत मन हो बूझने पहेली,
शर्त पहली ।।४२।।

पा लो न सुख साता,
तान वृक्षों सा औरों को छाता ।।४३।।

खेल चौसर जिन्दगी,
जुग टूटा ‘कि गोट मरी ।।४४।।

आज की आज बना लो बात,
काल ‘काल’ के हाथ ।।४५।।

कब नदी ने पूछा,
रास्ता सागर का खुद बूझा ।।४६।।

अपनापन परोसा जाता,
जुदा जायका आता ।।४७।।

दे चश्मा कोन,
अपनाना अपनों को ले माँ टोन ।।४८।।

हीरा मोती न हेम के,
‘री अपने भूखे प्रेम के ।।४९।।

कार बेकार,
चाहिए अपनों को प्यार दुलार ।।५०।।

गिलहरी दृग् वसी रघुनंदना,
थकना मना ।।५१।।

उत्तर देते ही, प्रश्न खड़े होते,
उड़ते तोते ।।५२।।

हमारे हाथ, स्टेरिंग सुख दुख
लो मोड़ रुख ।।५३।।

अदब फिदा,
मदरसे की अब जरूरत क्या ।।५४।।

साथ बुज़ुर्ग दुआ,
देखना फिर मुहूरत क्या ।।५५।।

शुकून मिला,
जो कहा शिकवा न किसी से गिला ।।५६।।

ले चिवटी लो जुबां,
बची-खुची न लाज दो गवा ।।५७।।

हाट बिकने भट भी जाते,
दाम घट ही जाते ।।५८।।

पढ़े दूसरी कक्षा,
‘सूज’ काँटों से करते रक्षा ।।५९।।

हवा पानी न लड़ते,
तलवार से न कटते ।।६०।।

मुझ में सब कुछ,
कहती सी सबर, मुझको वर ।।६१।।

सब पानी का किया धरा,
लकड़ी में कहॉं धुआं ।।६२।।

हटती नहीं
नज़र गुल सॉंझ टिकती नहीं ।।६३।।

पूनम होली, दीवाली अमावस होती,
क्यों रोती ।।६४।।

बढ़ रहे,
‘ना…खून’ हो के भी, तुम ठहर रहे ।।६५।।

‘का…? ले…जनमें’,
परिणाम किसी के गोरे तो गो ‘रे ।।६६।।

आ सीखते पानी से,
निपटना कैसे परेशानी से ।।६७।।

न आती जाती लहर हूॅं,
मैं पानी हूँ, अमर हूँ ।।६८।।

पानी आहिस्ता-आहिस्ता,
लेता बना अपना रस्ता ।।६९।।

किसे खलता है,
कमल कीचड़ में खिलता है ।।७०।।

दम्पति पत्नी-पति,
है पत्नी दम…शेष सुगम ।।७१।।

ली तान और ढ़ीली छोड़ी,
दाम्पत्य मथानी ड़ोरी ।।७२।।

माथ त्यों
सूना सूना, बिंदिया बिन दिया रात ज्यों ।।७३।।

पा के चूड़िंयों का संग,
कलाईंयाँ लें जमा रंग ।।७४।।

मेरे बिना तू अधूरी,
रख दूरी ना’री मैं सारी ।।७५।।

नज़र जान…वर जो बचना तो,
साड़ी बाड़ी सी ।।७६।।

खींचे रखते थे,
‘बाला’ कान, अब पड़ें खींचने ।।७७।।

नाक में नथ थी,
सही दिखाने ही पै तू नत थी ।।७८।।

करधनी थी
लटके थीं चाबिंयाँ, घर धनी थी ।।७९।।

बाली अदब निराली,
लेटने के बाद लेटती ।।८०।।

‘री बनायेगी कैसे,
पूड़िंयाँ गोल-‘गोल’ चूड़िंयाँ ।।८१।।

श्रृंगार ना…’री बेकार,
भेजे ये ही आईने द्वार ।।८२।।

थी पायजेब,
अब करोगी क्या जो कटेगी जेब ।।८३।।

राखे पी…हर, और पी…घर लाज,
बेटी जांबाज़ ।।८४।।

अकड़ माटी में दे मिला,
बेटी फन-वेत दे जिला ।।८५।।

चिटिया,
गिर उठ गिर-शिखर पा ले बिटिया ।।८६।।

सिया भी, जाता फट
पुराना पट, ए वैर हट ।।८७।।

बच-बच के जाएँ,
खेत-नील न बच के आयें ।।८८।।

तीजी नज़र,
बेजुबां तिरछी न तीखी नज़र ।।८९।।

बेजुबाँ कैसे,
तो चलते फिरते से मदरसे ।।९०।।

पीछे बेजुबाँ
ठग विद्या में, काफी आगे का इंसाँ ।।९१।।

बच्चे बेजुबाँ साथ सलीके बडे़,
पैरों पे खड़े ।।९२।।

बड़े सहज,
बेजुबां दें रोशनी, दूजे सूरज ।।९३।।

कहे सी मै…ना,
कुछ, बहुत कुछ, सब कुछ वो ।।९४।।

जीते जी दिल को हिल-मिल करे किल,
कोकिल ।।९५।।

राखी… वन से घन, घन तो जल,
जल से कल ।।९६।।

कहे ला…ल…च
च…ल…ला,
कितना, ला सके जितना ।।९७।।

देखना स्वप्न…. टूट फूट,
साहसी करे अटूट ।।९८।।

मिलना ? आना ख्वाब में,
रहूँ वहाँ बेनकाब मैं ।।९९।।

ज्यादा साँप तो कम सीढ़ी भी नहीं,
बढ़ो तो सही ।।१००।।

दौलत दोल… तरह,
आज यहाँ, तो कल वहाँ ।१०१।।

कहती हार,
मँहगा जीत हार, बढ़ायें बोली ।।१०२।।

मेढ़े सा पीछे जा,
करने का बार, और क्या हार ।।१०३।।

कहे सी हार,
दूसरी तरह से खोलिये द्वार ।।१०४।।

खा धूप खिला रहे छाया,
माँ रूप वृक्ष समाया ।।१०५।।

बेखता,
मार पत्थर सह रहे, वृक्ष देवता ।।१०६।।

लें थोड़ा,
दें… न जाये हाथों बटोरा, तरु श्री गुरु ।।१०७।।

कहाते नग,
भाग भाग जड़ों से, छू आते जग ।।१०८।।

री ! बरकत आती तमीज से,
न ‘कि ताबीज से ।।१०९।।

कमेन्ट्स बूम रिंग साथी,
लौट तेजी से वापिस आती ।।११०।।

‘मं’…दिर के ही दिरके,
ख्याल आते ही मंदिर के ।।१११।।

मुक्ति सीझती त्यों त्यों,
निर्वेग मति रीझती ज्यों ज्यों ।।११२।।

अक्कल दाढ़ फिर दिमाग,
आता दिल शुरु से ।।११३।।

दिमाग धुंध है, कुहासा है,
दिल है तो आशा है ।।११४।।

ऽमां ! मदरसे
छीन पैनी शिल, दे पेंसिल थमा ।।११५।।

तोता ज्योतिषी गया बन,
पढ़ तू भी लगा मन ।।११६।।

न लखा, लिखा किस काम का,
लखा, लिखा किस काम का ।।११७।।

Sharing is caring!

  • Facebook
  • Twitter
  • LinkedIn
  • Email
  • Print

Leave A Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

*


© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point

© Copyright 2021 . Design & Deployment by : Coder Point