परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 239 मन मेरे वचन तन । मेरे जीवन धन ।। हो क्या-क्या नहीं तुम । तुम्हीं मेरे भगवन् ।। स्थापना।। कलश नीर लाये । गहल कीर छाये ।। कर कुछ […]
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 239 मन मेरे वचन तन । मेरे जीवन धन ।। हो क्या-क्या नहीं तुम । तुम्हीं मेरे भगवन् ।। स्थापना।। कलश नीर लाये । गहल कीर छाये ।। कर कुछ […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचितपूजन क्रंमाक 238 हैं अंधेरे ।दो कह इक दफा ।ओ ! मेरे खुदा ।हैं हम तेरे ।। स्थापना ।। घट-जल भरे ।दो कह-इक दफा ।ओ ! मेरे खुदा ।हैं हम तेरे ।।हैं अंधेरे […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 237 फूल पथ में हों, या काँटे । सदा मिलें जो, मुस्कुराते ।। जलज जल-भिन्न वे जग में । करें संस्थित मुकति मग में ।। स्थापना ।। भोर, ना लख […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 234 विद्या सिन्धु अहो । दे जगह चरण दो ।। बे-वजह शरण ओ ! विद्या सिन्धु अहो ।। स्थापना।। विद्या सिन्धु अहो । घट लाये नीर हम । हट जाय […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 236 घन घोर अंधेरे । तुम ही इक मेरे ।। भर सपने रँग दो । कर अपने सँग लो ।। स्थापना ।। संसार अनोखा । दें अपने धोखा ।। भर […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 235 जी विधाता । दीन त्राता ।। इक शरण ओ । रख चरण लो ।। स्थापना ।। नीर लाये । तीर आये ।। इक शरण ओ । रख चरण लो […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 233 है भूल भुलैय्या । अयि ! मेरे खिवैय्या ।। दो लगा किनारे । मेरी ये नैय्या ।। स्थापना ।। है लिये नीर हम । ले रही पीर दम ।। ओ […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 232 हैं आकुल-व्याकुल हम । हो शान्त निराकुल तुम ।। प्यारा सपने जैसा । कर लो अपने जैसा ।। स्थापना ।। हैं गफलत मूरत हम । हो भले मुहूरत तुम […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 231 मैं आकुल-व्याकुल । हैं आप निराकुल ।। कर निज-सा लीजे । घर निज-सा कीजे ।। स्थापना।। मैं पुलिन्दा खता ! हैं आप देवता ।। कर निज सा लीजे । […]
परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित पूजन क्रंमाक 230 थाम पतवार लो । लगा उस पार दो ।। गुरु खिवैय्या । है मँझधार में मेरी नैय्या ॥ स्थापना ॥ भेंटते जल कलश । भेंट दें सम-दरश ॥ गुरु […]
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