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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 46

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 46

झिर आनन्द लगी माँ चेहरे ।
स्वप्न दिखा विद्याधर उतरे ।।
पिता मलप्पा आँगन में ।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।।स्थापना।।

आया, सागर-गागर लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। जलं।।

आया, नन्दन चन्दन लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।।चन्दनं।।

आया, अनछत अक्षत लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। अक्षतं।।

आया, सुमन श्रमण-मन लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।।पुष्पं।।

आया, नीरज नेवज लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। नैवेद्यं।।

आया, घी का दीवा लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। दीपं।।

आया, गन्ध नन्द वन लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। धूपं।।

आया Sकेले, भेले लाया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। फलं।।

आया दरब सरब मैं आया ।
अश्रु हमारी आँखन में ।।
अन्तर्यामी ! मेरे स्वामी ।
हमें राख लो पाँवन में ।।
लगे बाजने बाजे सबरे,
पिता मलप्पा आँगन में ।। अर्घ्यं।।

==दोहा==
जिनके सुमरण मात्र से,
बनते बिगड़े काम ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
बार अनन्त प्रणाम ।।

==जयमाला==
पाठ शाला चाले विद्या ।
साथ लेकर गहरी श्रद्धा ।।
शीघ्र आ कण्ठ वसीं माता ।
जुड़ चला अक्षर-सुर नाता ।।

फबे काँधे पे बस्ता है ।
पैर छू चाला रस्ता है ।।
ठगी सी रह जाती दुनिया ।
देख ये कौन फरिश्ता है ।।
पाठ शाला चाले विद्या ।
साथ लेकर गहरी श्रद्धा ।।
शीघ्र आ कण्ठ वसीं माता ।
जुड़ चला अक्षर-सुर नाता ।।

आँख जिसकी हैं झुकीं झुकीं ।
किसी को देख न सके दुखी ।।
मिले जब समय, भिंजा अंखिंयाँ।
प्रार्थना रत ‘सब रहें सुखी ।।
पाठ शाला चाले विद्या ।
साथ लेकर गहरी श्रद्धा ।।
शीघ्र आ कण्ठ वसीं माता ।
जुड़ चला अक्षर-सुर नाता ।।

झाँकते शुक-कोयल बगलें ।
बोल मुख निकले मनु गजलें ।।
देखते ही जिसकी मुस्काँ ।
झुका ले गुल अपनी नजरें ।।
पाठ शाला चाले विद्या ।
साथ लेकर गहरी श्रद्धा ।।
शीघ्र आ कण्ठ वसीं माता ।
जुड़ चला अक्षर-सुर नाता ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।
==दोहा==
गुरु सा अद्भुत रत्न ना,
खोजा देश विदेश ।
पर्श मात्र से जो करे,
पामर को परमेश ॥

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