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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 35

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक – 35

चिन्ह अनंग बना ध्वज थारे ।
बाल ब्रह्म चारी मुनि सारे ।।
विद्या सिन्ध बना, अपना लो ।
ले अभिलाष खड़े तुम द्वारे ।।स्थापना।।

देखा फूल, भ्रमर बनता ।
भ्रमर सुबह गज मुख दिखता ।।
छोड़ा तुमने फूलों को ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ सकें हम भूलों को ।। जलं।।

चन्दन देख साँप बनता ।
हाथ सँपरे आ लगता ।।
छोड़ा तुमने सुख थोथा ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ सकें हम कृत खोटा ।। चंदन।।

हड्डी देख श्वान बनता ।
कूकर लहुलुहान बनता ।।
छोड़ा तुमने अस्थी को ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ सकें हम मस्ती को ।।अक्षतम्।।

हित कस्तूर, हिरण बनता ।
हाँप आप ही मृग मरता ।।
छोड़ी तुमने कस्तूरी ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
राखें बना विषय दूरी ।। पुष्पं।।

काँच देख बनता चटका ।
टूक चोंच, न काँच चटका ।।
छोड़ा तुमने गमलों को ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ें हम ‘ही’ गैलों को ।। नैवेद्यं।।

दीपक देख शलभ बनता ।
झुलस पतंग भूम पड़ता ।।
छोड़ी तुमने मनमानी ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ सकें हम नादानी ।। दीपं।।

देखूँ जल मैं गज बनता ।
फँस दलदल हाथी मरता ।।
छोड़ी तुमने पामरता ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
छोड़ सकें हम भी जड़ता।। धूपं।।

लख दाने पंछी बनता ।
पंछी आ जाले फँसता ।।
छोड़ा तुमने ममता को ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो,
राख सकें हम समता को ।। फलं।।

जल, चन्दन, धाँ, गुल नन्दन ।
दीप, धूप, फल, घृत-व्यंजन ।।
चढ़ा रहा हूँ चरणों में ।
विद्या सिन्धु बना, अपना लो ।
करने सुमरण मरणों में ।। अर्घं।।

“दोहा”
रहता जिनके द्वार पे,
बनकर दास अनंग ।
गुरु विद्या प्रणमूँ,भरें-
वे जीवन में रंग ।।

॥ जयमाला ॥
कलि तलवार धार पर चलना,
कब आसाँ भाई ।
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई ॥

यदपि धर्म दश सज्जित पर ना,
वश में मनमथ के ।
एक सारथी बने हुये सो,
कलियुग शिव रथ के ॥
कलि तलवार धार पर चलना ,
कब आसाँ भाई ।
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई ॥

ज्ञान गरिष्ठ सेवि फिर भी ना
वश में मनमथ के ।
एक सारथी बने हुये सो,
कलियुग शिव रथ के ॥
कलि तलवार धार पर चलना,
कब आसाँ भाई ॥
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई ॥

हृदय बसी शिव नार तदपि ना,
वश में मनमथ के ।
एक सारथी बने हुये सो,
कलियुग शिव रथ के ॥
कलि तलवार धार पर चलना,
कब आसाँ भाई ।
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई ॥

रसिक सरस निज गीत तदपि ना,
वश में मनमय के।
एक सारथी बने हुये सो,
कलियुग शिव रथ के ॥
कलि तलवार धार पर चलना
कब आसाँ भाई ॥
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई ॥

चरित अगम्य कहाँ काबिल में,
गुण कीर्तन पथ के ।
एक सारथी बने हुये सो,
कलियुग शिव रथ के ॥
कलि तलवार धार पर चलना
कब आसाँ भाई ।
अडिंग चला करते वे धन-धन,
विद्या मुनि राई
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*दोहा*
कर प्रणाम फरसी तुम्हें,
विनती करता देव ।
हर लीजे, शिव नार को,
जो ना रुचे कुटेव ॥

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