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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 32

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 32

मैं बड़भागी ।
मेरी लगन लागी ।।
गुरु चरण से, बचपन से ।
न ‘कि आजकल से, बल्कि बचपन से ।
मेरी लगन लगी, गुरु चरण से ।। स्थापना।।

हाथ कलशे ।
भाँत कल से ।
आये, लाये भर क्षीर जल से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से।। जलं।।

हाथ चन्दन ।
भाँत चन्दन ।
आये, लाये गिर मलयन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।। चंदन।।

हाथ अक्षत ।
सार्थ अक्षत ।
आये, लाये भीतर मन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।।अक्षतम्।।

सुगंध न्यार ।
पुष्प पिटार ।
आये, लाये वन नन्दन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।।पुष्पं।।

चोर दृग्-मन ।
भोग छप्पन ।
आये, लाये दिव्य भुवन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।।नैवेद्यं।।

मण-मोति धन !
धन ! ज्योत अन ।
आये, लाये स्वर्ग सदन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।। दीपं।।

गन्ध अनूप ।
दश गंध धूप ।
आये, लाये मन वचन तन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।।धूपं।।

मिसरी अमृत ।
फल सर्व ऋत ।
आये, लाये समवशरण से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से ।। फलं।।

दिव्य विरली ।
द्रव्य शबरी ।
आये, लाये दिव उपवन से ।
रहे परिणत जागी,
जब से लगन लागी गुरु चरण से।। अर्घं।।

*दोहा*
जयतु ज्ञान सागर कहे,
साँसों का हर-तार ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
नमन अनंतो बार ।।

॥ जयमाला ॥
सदलगा गौरव तुम ।
जैन कुल सौरभ तुम ।।
पिता मल्लप्पा जाँ ।
तुम्हारी श्री मति माँ ।।

शारदी मनहारी ।
पूर्णिमा अवतारी ।।
सूर्य तेजो माथा ।
नूर आसमां नाता ।।

की पढ़ाई न्यारी ।
अखर, ढ़ाई वाली ।।
भोग कब पग बाधा ।
योग अरहत साधा ।।

आश ब्रमचर पूरी ।
देश-भूषण सूरी ।।
ज्ञान गुरु, गुरु शिक्षा ।
ज्ञान गुरु, गुरु दीक्षा ।।

पुण्य भू अजमेरा ।
लगा भक्तन मेला ।।
गुरु उपाधी छोडी ।
रति समाधी जोड़ी ।।

नसीराबाद नगर ।
नसीबा हाथ अमर ।।
हाथ संयम खुशबू ।
बाद बुन्देली भू ।।

दिगम्बर दीक्षाएँ ।
आर्यिका बालाएँ ।।
ब्रह्म प्रतिभा मंडल ।
ब्राह्म आश्रम संदल ।।

ब्रह्मचारी ग्वाला ।।
दयोदय गोशाला ।।
प्राणदा वायू है ।
खुली पूर्णायू है ।।

काल अभिजित सुन्दर ।
लाल पत्थर मन्दर ।।
अचिन्त्य गौरव गाथा |
अन्त्य ‘नाता’ माथा ।।

‘निरा-कुल’ बन पाऊँ ।
भावना इक भाऊॅं ।।
सदलगा गौरव तुम ।
जैन कुल सौरभ तुम।।

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*दोहा*
गुरुवर विद्या सिन्धु जी,
कर दीजे इक काम ।
लिख भक्तों में लीजिये,
मेरा भी इक नाम ।।

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