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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 31

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 31

सदलगा से है नाता ।
दया बरसाना आता ।।
पिता मल्लप्पा जिनके ।
भक्त हम अनन्य उनके ।।
जयकारा गुरु देव का…
जयजय गुरु देव ।। स्थापना।।

देख तुम्हें रत्नत्रय मन्डित,
अंतरंग सिसके मेरा ।
काल भरोसे वृषभ कोल्हू सा,
लगा रहा भव भव फेरा ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। जलं।।

तुम्हें क्षमा आभूषण मंडित,
ज्यों देखा मन पछताया ।
उम्र क्रोध की छोटी थी धिक्,
धीरज कहाँ सुमर पाया ॥
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। चंदन।।

मार्दव धर्म अभिलसित तुमको,
ज्यों देखा मनवा रोया ।
शब्द स्वयं कह रहा ‘मा…न’ था,
सुना न माँ प्रवचन खोया ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।।अक्षतम्।।

ऋतुता मंडित देख आपको,
मन मानस पछताया है ।
भाग-भाग बगुले के पीछे,
जी मण-मोति चुराया है ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। पुष्पं।।

देख आपको सन्तोषी इक,
मैं मन ही मन पछताया ।
आशा गर्त कौन भर पाया,
हन्त ! भरा मुँह की खाया ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। नैवेद्य।।

निरत त्याग तप निरख आपको,
मन विकल्प उठते नेका।
बिना ताप के स्वर्ण खरा कब,
डरा हार का मुँह देखा।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। दीपं।।

देख ध्यान निष्कंप आपका,
भीतर भीतर पछताया ।
था करीब ही मेरा भगवन् ,
दर दर खोज, कहाँ पाया ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।।धूपं।।

देख आत्म बल स्वामिन् थारा,
मनस् हमारा पछताया ।
काल सुयोग्य मिला संहनन पर,
दृढ़ संकल्प न रख पाया ।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। फलं।।

‘सहज निराकुल’ देख आपको,
मन मेरा अकुलाया है ।
मिला निरा कुल जैन भाँति मण,
कागा उड़ा गवाया है।।
अपने पीछे मुझे लगा लो,
अपनी नैय्या में रख लो ।
खींच मुझे भी शिव ले चालो,
अपनी छैय्या में रख लो ।। अर्घं।।

“दोहा”
दीनन क्रन्दन क्या सुना,
हुये तरबतर नैन ।
श्री गुरु विद्या सिन्धु वे,
जजूँ तिन्हें दिन रैन ॥

॥जयमाला ॥

शशि पून शरद अभिराम ।
गौरव सदलगा प्रणाम ।।
माँ श्री मति राज दुलार ।
मल्लप्पा नयन सितार ।।१।।

चित् चोर दल कमल नैन ।
अलि, मिसरी कोकिल वैन ।।
चिकने घुँघराले केश ।
तेजोमय माथ प्रदेश ।।२ ।।

तर करुणा हृदय विशाल ।
मति प्रत्युत्पन्न मराल ।।
ब्रमचर मुनि भूषण-देश ।
साक्षी पूर्वक गोम्टश ।। ३।।

दीक्षा दैगम्बर धूम ।
अजमेर नगर पुन-भूम ।।
विद्याधर दीक्षा पात्र ।
गुरु ज्ञान-सिन्ध पद-यात्र ।। ४।।

विद्यासागर नव नाम ।
साँझन सुमरण इक काम ।।
गुरु विद्या साक्ष समाध ।
लागी ‘गुरु’-ज्ञान उपाध ।। ५।।

चर्या जुग चतुर्थ देख ।
दी ढ़ोक, लोक सर टेक ।।
हो चले नेक निर्ग्रन्थ ।
रख भावन भद्र समन्त ।। ६।।

दीक्षित बालाएँ नेक ।
स्वर्णिम वज्रांकित लेख ।।
कृति काल जेय अगणीत ।
खुद समाँ जिया नवनीत ।। ७।।

हित सहज निराकुल सौख ।
युत वचन काय मन ढ़ोक ।।
शशि पून शरद अभिराम ।
गौरव सदलगा प्रणाम ।। ८।।
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

==दोहा==
सुनते ही जिनको मिले,
व्याकुल मन को चैन ।
नमन उन्हें दिन-रैन वे,
श्री गुरु विद्या वैन ।।

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