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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 23

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 23

सन्त शिरोमण एक तुम्हीं हो ।
संकट मोचन एक तुम्हीं हो ।।
एक तुम्हीं वर्तमाँ गुपाला ।
सीले लोचन एक तुम्हीं हो ।।
ज्ञान-सिन्धु सुत, श्री-मति-लाला ।
एक तुम्हीं वर्तमाँ गुपाला ।। स्थापना ।।

खेद कहाँ करता गलती कर,
गलती पर गलती करता ।
माने शिशु जल कर हा ! हा ! मैं,
विषय पंक पुनि-पुनि गिरता ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक गलती,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।।जलं।।

देख न सकता गुण औरन मैं,
फौरन, जल भुन जाता हूँ ।
अतराते उर औ-गुन तिल से,
अपने सदा छिपाता हूँ |
कुछ कर दो, दें दस्तक औ-गुन,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।।चंदन।।

उजले-उजले कपड़े पहने,
किया न अपना मन उजला ।
भोगे भोगों की यादें भी,
जातीं आज-तलक फिसला ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक कालिख,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।।अक्षतम्।।

मौका जैसे भी मिलता है,
दामन पाप पकड़ता हूँ ।
मन वच तन व्यापार न चोखा,
करके कपट अकड़ता हूँ ॥
कुछ कर दो, दे दस्तक किल्विष,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।।पुष्पं।।

आदत बुरी निशाँ कानों के,
छोड़ दिवालों पे आता ।।
चटखारे लेकर साबुत ही,
बाद निगल चुगली जाता ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक अभक्ष्य,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।। नैवेद्यं।।

भुला सीख बुध प्यासे गज सा,
मन अपना दल-दल पटका ।
बाहर नाक कहाँ कुछ अपना,
हा ! मृग सा दर-दर भटका ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक माया,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।। दीपं।।

मन झोली भरने, मनमाने,
हिंसक खेल रचे मैनें ।
बाहर स्वप्न, स्वप्न क्रमशः खूँ ,
दो…नों हाथ रँगे मैनें ।
कुछ कर दो, दे दस्तक तृष्णा,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।। धूपं।।

पाप समय खरगोश सरीखे,
कान आँख पे रखता हूँ ।
कर्म शिकारी दे पीड़ा तब,
औरों का मुख तकता हूँ ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक गफलत,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।।फलं।।

मृत्यु दिखी आती औरों की,
अपनी कहाँ दिखाई दी ।
लगा मुखोटे इक ऊपर इक,
छिन वैराग्य बिदाई दी ।।
कुछ कर दो, दे दस्तक आलस,
मैं खोलूँ ना दरवाजा ।
और हटक दो, कह न सके मन,
पिछले दरवाजे़ आ जा ।। अर्घं।।

*दोहा*

वज्रांकित जिनने किये,
हृदय चरण गुरुदेव ।
काम बनाने आ चले,
उतर स्वर्ग से देव ।।

।।जयमाला।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।

ले पाँखुड़ि इक मेंढ़क ।
जा पहुँचा स्वर्गों तक ।।
करती पाप किनारे ।
टिकती चुनर सितारे ।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।

श्रद्धा पद-रज राखी ।
सोन जटायू पाखी ।।
खड़े-खड़े धरती पर ।
हाथ लगाती अम्बर ।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।

भव छव सत् शिव सुन्दर ।
नाग, नेवला, बन्दर ।।
भरती हया दृगों में ।
भरती दया रगों में ।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।

अंजन हुआ निरंजन ।
चन्दन टूटे बन्धन ।।
भव जल गहन घनेरा ।
पार लगाये बेड़ा ।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।

सहज निराकुल करती ।
सहज निरा’कुल धरती ।।
गुरुदेवा-गुरुदेवा ।
तेरे चरणों की सेवा ।।
देती पूर मुरादें ।
सुन लेती फरियादें ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

*दोहा*
किस मुख से कहने चला,
महिमा श्री गुरु नन्त ।
धरण जुबां रख नेक भी,
कहाँ पा सका अन्त ।।अअ

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