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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 4

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 4

नन्दन माँ श्री मन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
नूर सदलगा ग्राम ।
बार अनन्त प्रणाम ।।स्थापना।।

लाया प्रासुक नीर ।
भाया भव-जल तीर ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।जलं।।

लाया झारी गन्ध ।
भाया चित-आनन्द ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।चन्दनं।।

लाया अक्षत धान ।
भाया पद निर्वाण ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।अक्षतं।।

लाया पुष्प पिटार ।
भाया मन अविकार ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।पुष्पं।।

लाया घृत नेवेद ।
भाया एक अभेद ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।नेवैदं।।

लाया घी तर ज्योत ।
भाया भीतर स्रोत ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।दीपं।।

लाया धूप अनूप ।
भाया इक चिद्रूप ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।धूपं।।

लाया श्री फल थाल ।
भाया मनवा-बाल ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।फलं।।

लाया द्रव्य परात ।
भाया दिव-शिव पाथ ।।
चर्चित पूरण मंश ।
गुरु विद्या मत-हंस ।।
नन्दन माँ श्री मन्त ।
वन्दन कोटि अनन्त ।।
नूर सदलगा ग्राम ।
बार अनन्त प्रणाम ।।अर्घं।।

जयमाला

दोहा
गुरु भक्ती कलि काल में,
मात्र सहारा एक ।
आ, पल-दो पल के लिये,
लेते मथ्था टेक ।।

जयकारा जय जय कारा ।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।
जन्म जलधि खेवन हारा ।।
जय कारा जय जय कारा ।।

जनहित जारी ढेर प्रकल्प ।
भाई ! कलिजुग काया कल्प ।।
दही, दूध, घी-मक्खन-धार ।
रहते खुले गुशाला द्वार ।।
एक वर्तमाँ गोपाला ।
जय कारा जय जय कारा ।।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।
जन्म जलधि खेवन हारा ।।
जय कारा जय जय कारा ।।

जनहित जारी ढेर प्रकल्प ।
भाई ! कलिजुग काया कल्प ।।
रोग असाध्य योग उपचार ।
रहें खुले पूर्णायू द्वार ।।
अर धन्वन्तर अवतारा ।
जय कारा जय जय कारा ।।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।
जन्म जलधि खेवन हारा ।।
जय कारा जय जय कारा ।।

जनहित जारी ढेर प्रकल्प ।
भाई ! कलिजुग काया कल्प ।।
पाई आखर ढ़ाई नार ।
खुले रहें थलि-प्रतिभा द्वार ।।
बिन कारण तारण हारा ।
जय कारा जय जय कारा ।।
जैन आसमाँ ध्रुव तारा ।।
साँचा गुरु विद्या द्वारा ।
जन्म जलधि खेवन हारा ।।
जय कारा जय जय कारा ।।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

दोहा
बिन माँगे सब कुछ दिया,
क्या माँगें गुरुदेव ।
दास बना रखना मुझे,
चरणन पास सदैव ।।

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