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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 7

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 7

चाहे पान न चावल हल्दी ।
रूठ,मान जाती माँ जल्दी ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।स्थापना।।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामी…

आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
हा ! आ चला नाक तक ‘पानी’ ।
राख न सका अब तलक पानी ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।जलं।।

‘चन्दन’ मन,अहि-पाप घनेरे ।
सुमरण धुन-मयूर ना हेरे ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।। 
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा।।चन्दनं।।

‘अक्षत’ पाँत स्वप्न मिल पाई ।
दीमक भाँत बटोरूँ ‘पाई’ ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।अक्षतं।।

‘सुमन’ नाम भी हाथ न लागा ।
फिरूँ गाँठ वाला ले धागा ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।पुष्पं।।

सुदूर ‘छप्पन’,दूर तिरेसठ ।
छुऊँ तीन फिर छै वाली हद ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।नेवैद्यं।।

ज्योति-भक्ति पल अब-तब रीझी ।
अब-तक तीजी आँख न सीझी ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।दीप॑।।

बिन बादल मन मेरा बरसे ।
क्यों आयेगी सुगंध मुझसे ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।धूपं।।

आज हवा,कर चिन्ता कल की ।
आँख न सजल चाह है फल की ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।फल॑।।

पद अनर्घ कैसे आराधूँ ।
हेत अर्थ,अनर्थ सब साधूँ ।।
आँखों में जल भर लाया हूँ ।
बड़ा दुखी हूँ,घबड़ाया हूँ ।।
छोटे बाबा शिशु में तेरा ।
रखना ध्यान हमेशा मेरा ।।अर्घं।

जयमाला
दोहा
गुरु दे इक मुस्कान दें,
मिलता सहज सुकून ।
फीके से लगने लगें,
निश प्रसून,शश पून ।।

तेरा तुझे भेंटने आया ।
ले जाना क्या,था क्या लाया।।
काँच-भाँत यह काया काची।
जाहिर-जगत पुराणन बाँची ।।
वह खोया,जो इसे खिलाया ।
तेरा तुझे भेंटने आया ।
ले जाना क्या,था क्या लाया ।।
तेरा तुझे भेंटने आया ।

सार्थ नाम करते-से रिश्ते।
स्वार्थ सधा दिखते हैं रिसते ।।
मन इनका किसने भर पाया ।
तेरा तुझे भेंटने आया ।
ले जाना क्या,था क्या लाया ।।
तेरा तुझे भेंटने आया ।

चाह-दाह से खूब जला हूँ ।
सुखाभास से ऊब चला हूँ ।।
‘सहज-निराकुल’सुख अब भाया ।
तेरा तुझे भेंटने आया ।
ले जाना क्या,था क्या लाया ।।
तेरा तुझे भेंटने आया ।

दोहा
दास बना इस भक्त को,
रख लो चरणन पास ।
पद-रज-कण मिलते रहें,
और न बस अभिलाष ।।

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