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आचार्य श्री पूजन

गुरु पाद पूजन – 2

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक – 2

=== स्थापना ===

विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।
तरण वैतरण-धारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र अवतर अवतर संवोषट् इति आव्हानम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठ: ठ: इति स्थापनम्।
ॐ ह्रीं श्री 108 आचार्य श्री विद्यासागर जी मुनिराज अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
पुष्पांजलि क्षिपामी…

जल के कलशे भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।जलं।।

नन्दन चन्दन भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।चन्दनं।।

मंजुल तण्डुल भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।अक्षतं।।

कुसुम कल्प-द्रुम भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।पुष्पं।।

अरु चारू चरु भेंट |
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।नेवैद्यं।।

‘नाम-राश’-इक भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।दीप॑।।

गंध नन्द वन भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।धूपं।।

ऋत-ऋत फल दल भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।फल॑।।

सहज दरब सब भेंट ।
नमतर नयन समेत ।।
रखना ध्यान हमारा ।
साँचा सद्गुरु द्वारा ।।
विद्या सागर दीव ।
जिसने रखा करीब ।।
दूर हुआ अँधियारा ।
जयकारा, जयकारा ।।अर्घं।।

“दोहा”
निःप्रमादी पन के बने,
कलि जो दूजे नाम ।
गुरु विद्या सविनय तिन्हें,
बारम्बार प्रणाम ॥

“जयमाला”
धन ! भव मानव कर लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।

पाप कषाय भाव जीते ।
अम्बर आडम्बर रीते ।।
परहित नैन रखें तीते ।
गम खाते, गुस्सा पीते ।।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।१।।

वन जोवन बड़भागी हैं ।
केश लोंच अनुरागी हैं ।।
कागी परिणत त्यागी हैं ।
आप समान विरागी हैं ।।
गदगद बोल हदय भींजे ।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।२।।

सूर सामने ग्रीषम पल ।
खड़े आन बरसा तरु-तल ।।
शिशिर सांझ मारुत शीतल ।
चतुपथ आन खड़े अविचल ।।
हित पनील लोचन तीजे ।
गदगद बोल हदय भींजे ।
हाथों में दीपक लीजे ।
श्री गुरु की आ-रति कीजे ।।३।।
“दोहा”
जिमि शिशु बाहु प्रसार के,
कहता सिन्धु वितान ।
तिमि शिशु-मति अनुसार ये,
स्वीकारें गुण गान ॥

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