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आरती

आचार्य श्री आरती-31

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।

सुख देते प्रभु दुख भी देते ।
सुख देते गुरु दुख हर लेते ।।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।१।।

मणि चिन्ता, गउ-सुर-तरु फीके ।
पड़ें स्वस्ति गुरु शिख क्या दीखे ।।
टक चूनर दें शशि परिवारा ।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।२।।

पौधा नीचे विरख न पनपे ।
कृपा दृष्टि गुरु पड़ी अपन पे ।।
चूर चूर वसु कर्मन कारा ।
गुरु ने जीवन शिष्य संवारा ।
खोली आंख छटा अंधियारा ।।
महिमा श्री गुरु अपरम्पारा ।
करें आरती आओ मिल के ।
लिये दीप दूजा ध्रुव तारा ।।३।।

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