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आरती

आचार्य श्री आरती-26

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

।।मुझे दीखे वन में मुनिराज।।

हाथ में दीपों की थाली ।
जगमगाती ज्योती वाली ।।
उतारूँ आरतिया में आज ।
पुण्य पे अपने मुझको नाज ।।
मुझे दीखे वन में मुनिराज ।।१।।

जोर की बरसा मुसलधार ।
बूँद बाणों सा करे प्रहार ।।
गरजती बिजली सींह दहाड़ ।
सहज सहते तरु-मूल विराज ।।
पुण्य में अपने मुझको नाज ।
मुझे दीखे वन में मुनिराज ॥२।।

चले, कर साँय-साँय पवमान ।
राख जल हरे-भरे खलिहान ।।
तब खड़े जो चौराहे आन ।
मिल गये तारण-तरण जहाज ॥
पुण्य पे अपने मुझको नाज ।
मुझे दीखे वन में मुनिराज ।।३।।

दूर तरु, नाम निशान न छाह ।
धरा उगले अंगारी दाह ।।
तब धरी जिनने पर्वत राह ।
ढ़ोक, सुन ली मेरी आवाज ।।
पुण्य पे अपने मुझको नाज ।
मुझे दीखे वन में मुनिराज ।।४।।

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