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आरती

आचार्य श्री आरती-14

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

धन-धन ! भव मानव कर लीजे ।
गुरु चरणों की आरति कीजे ।।

तन वस्त्राभरण नगन चाले ।
डर नरक पतन जोवन चाले ।।
हाथों में घृत दीपक लीजे ।
गुरु चरणों की आरति कीजे ।।१।।

कचलोंच करत, न डरत परिषह ।
रह भीतर परसें पुनि पुनि तह ।।
ले श्रद्धा सुमन नयन भींजे ।
हाथों में घृत दीपक लीजे ।
गुरु चरणों की आरति कीजे ।।२।।

तप आतप साध रहे हरसा ।
निशि शिशिर अभ्र, तरु-तल बरसा ।।
हित नैन सजल भीतर तीजे ।
ले श्रद्धा सुमन नयन भींजे ।
हाथों में घृत दीपक लीजे ।
गुरु चरणों की आरति कीजे ।।३।।

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