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आरती

आचार्य श्री आरती-11

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

==आरती==

।। ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।
तुम मिले मुझे, सब कुछ मिल गया ।

दीप ने पाई ज्योती ।
सीप ने पाया मोती ।
नदारद बुद्धी खोटी ।
नेह निस्पृह बपोती ।।
श्वास पा गया, लौं जाता दिया ।।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

चांद पा गया चकोरा ।
नाद पाया घन मोरा ।
हाथ मन अन्तर कोरा ।
गांठ बिन सुलझा डोरा ।।
टकटकी लगा, निहारूॅं मूरतिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

अमृत बरषाये चन्दा ।
स्वर्ण पा गया सुगन्धा ।
भक्ति में मनुआ अंधा ।
मात श्री मन्ती नन्दा ।।
और न तुम सा देखी दुनिया ।
ले दिया, मैं उतारूॅं आरतिया ।।

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