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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -331

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !

‘एक गीत’
तुम चले गये किधर
साथ-साथ जीने-मरने के वादे भुलाकर
मुझे रुलाकर
तुम चले गये किधर

हिचकियाँ तुम्हारी, न हो रही होगी बंद
लौट भी आओ तुम्हे तुम्हारी ही सौगंध
अय ! मेरे जानो जिगर !
तुम चले गये किधर

याद मेरी, आ रही होगी तुम्हें भी
मुझे आ रहीं, यें हिचकियाँ बता रहीं

सिसकियाँ तुम्हारी न हो रही होगी बंद
हिचकियाँ तुम्हारी न हो रहीं होगी बंद
लौट भी आओ तुम्हे तुम्हारी ही सौगंध
अय ! मेरे जानो जिगर !
तुम चले गये किधर

रात भर से ये पंक्तियाँ रहकर याद आ रही हैं
मेरा जिगरी दोस्त बिना बताये मुझे,
इस दुनिया को छोड़कर चला गया है
मैं क्या करूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
सुनिए,
आपने कविता में प्रश्न किया,
मैं भी कविता में उत्तर देता हूँ

दीपक की ज्योत का
मत करना भरोसा मौत का
काफी है हवा का झोका एक
अपनी ही श्वास से न बुझ जाये देख
मत करना गुमान रूप का
रूप ये….
और पैसे-रुपये
कुछ कुछ निभा रहे किरदार छाँव और धूप का
मत करना अभिमान रूप

दीपक की ज्योत का
मत करना भरोसा मौत का
परिमाण भले समन्दर सा रखता
बूँद बूँद करके तेल बाती चुकता

मत करना गुमान रूप का
रूप ये….
और पैसे-रुपये
कुछ कुछ निभा रहे किरदार छाँव और धूप का
मत करना अभिमान रूप

सच…

बच हिरनिया
शेर ने हेर लिया
बच हिरनिया
बच हिरनिया

सवार सिर खून शेर के
खूॅंखार नाखून शेर के
खूँ उतार अखिया
शेर ने हर लिया
बच हिरनिया

मुख पाँच पाँच शेर के
दाँत किराच काँच शेर के
लथपथ खूँ जुबां
खूँ उतार अंखिया
शेर ने हर लिया
बच हिरनिया

देखा आँखें तरेर के
श्याह मनसूबे शेर के
छलांग क्षिजित छुआ
खूँ उतार अखिया
शेर ने हर लिया
बच हिरनिया
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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