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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -323

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
मैं जल्दी ही टूट चलता हूँ
क्या करूँ कैसे जगाऊँ आत्म विश्वास
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
हार जिन्होंने मानी, लो हार वो गये
हार न जिन्होंने मानी, लो पार हो गये

हाँ, थकना मना
यहाँ रुकना मना
खरगोश मँझधार
कछुआ उस-पार
तब-तक है आश
जब-तक है श्वास
कहो, क्या न सुना
हार मत मानना

न सिर्फ दीवाल पे चढ़ी
आगे दिवाल से बढ़ी
बेल छू लेगी आसमां
हाथ धो के पीछे जो पड़ी

हाँ, थकना मना
यहाँ रुकना मना
चींटी हाथापाई
हाथी धराशाई
मन के हारे हार
मन के जीते जीत
कहो, क्या न सुना
हार मत मानना

गिर, फिर के लो खड़ी
दाना शकर ले चढ़ी
चींटी पा लेगी शिखर
हाथ धो के पीछे जो पड़ी

चले चलो
चले चलो
भले मुश्किलें, बढ़े चलो

खूब जमकर मिलेंगे
काँटे कंकर मिलेंगे
यहाँ कहाँ फूल
रास्तें में जहाँ तहाँ धूल
अड़चनें लगा गले चलो
चले चलो
चले चलो
भले मुश्किलें, बढ़े चलो

दूूर दूर मिलेंगे
वो भी पेड़ खजूर मिलेंगे
कहाँ रसीले कूप,
रास्ते में चिलचिलाती धूप
उलझनें लगा गले चलो
चले चलो
चले चलो
भले मुश्किलें, बढ़े चलो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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