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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -271

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
कितनी जानकारी रखनी चाहिये,
मन तो चाहता है,
सारी दुनिया की बात जानने में आ जाये,
यह फिर साईकल के पहिये के जैसे,
मन देर तलक घूमता रहता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
स्वयं कहता शब्द
जानकारी
इतनी है ‘कि जाँ…नियारी
दिख रहे हाथी के दाँत से
A B C D के अल्फाबेट टू-सिक्स
किन्तु परन्तु कहाँ इतने ही फिक्स
देखो डिक्शनरी
हाँ…हाँ देखो बुकों से डेक्स भरी
6 महीने तक आग जली
न जली एक लाईब्रेरी
हाँ…हाँ लाईव ए’री
न ‘कि फर्जी-बाड़ा
पर्ची-पर्ची सँभाला बुजुर्गों ने हमारे,
हमारे लिये ‘कि बन सकें दीये
रोशनी तो एक ही कर देगा, सारे कमरे में,
जुगनू भी चीरता अंधेरा,
चुन्नू सा भले इतिवृत विरले
दो… नौ… सौ… उसी कमरे में रखते चलो
ज्योति में फर्क तो आयेगा,
लेकिन दिखने वाला मोति
चूँकि पहले वाले दीप में ही स्पष्ट हो चला था, अब मन संतुष्ठ हो चला था,
अब और कहाँ तक पहुँचायेगा
सो सं यानि ‘कि समीचीन… सार
ग्राहक बनते ही
जड़धी
संसार जलधि पार दीखते ‘री परिणति मोरी
आ सीखते आखर ढ़ाई
सुनते हैं,
हैं बेजोड़ी
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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