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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -250

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
आप कहते है गुण-ग्राही दृष्टि रखिये,
ऐसा करता हैं, इन गुणों के पास,
जो इतना गुणगान करते रहते है आप इनका
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
गुण गुड़ हैं,
सुना नहीं
गुड़ ने धूल को अमूल किया
कहाँ चीनी के पास ऐसा अमूल जिया

देखो ना खुद ही कह रहे गुण,
गुन मुझे बनती कोशिश गुन लो, चुन लो
सर्वाधिकार सुरक्षित नहीं रखता कुछ भी मैं
जो सब कुछ मेरा, वो तेरा है

शब्द गुण गुरु के पहले अक्षर से बनता है,
कोई मनचला कह चले
‘रे नो…नो…नो…
गुमान के पहले अक्षर से बनता है यह,
सो पीछे ‘न’ को लगाये रखता है
ऐसा वैसा नहीं,
गुण…गुणा
गुणित क्रम में वृद्धि वाले गुण बढ़ाते जाईये
उदार-मना गुण,
एक गुना, नेक गुना
दो गुना, सौ गुणा होते चले जायेंगे

जाल शब्द बदनामशुदा इसने आगे जुड़ के
बना लिया जुदा गुंजार
और हम कहते उद्‌धार हो हमारा
तो उद्‌धार करने वाले से मेल जोल तो बढ़ायें
हम लग चलेंगे पार
भँवरा गुनगुन करता हुआ,
यही तो कह रहा है
गुन को गुनो

इतिहास गये रच
बढ़ते जवान,
कड़वे जुबान
होने से अये ! बच
आ… इतिहास नये रच

सुन आलस के क्षण,
सोने से
सोने-जैसे
बिन आलस ने क्षण चुन

सो मुँह दिखाई लेते हैं बस,
थोड़ा सा सम्यक् जतन
कुछ धस के रहते हैं पानी में रतन
आओ साधो !
फिर डूबा साधो
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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