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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -206

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
‘रक्षा, बन्धन में’
बात कुछ-कुछ गले नहीं उतरती हैं,
प्रभो !
बन्धन तो असुरक्षा का नाम है,
तभी तो पिंजरे के खुले मिलते ही
परिन्दा फुर्र हो लेता है
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
भाई सिर्फ मैं ही कब कह रहा हूँ,
यही तो कहता है, पर्व रक्षा बन्धन
जो शुभ शगुन है
नम्बर वन धन है

देखो,
काँटों के बीच फूल रहे,
कब फुला रहे नाक अपनी
सुन जो रखी घड़ी कथनी,
‘कि घड़ी-घड़ी रहेंगे इतने काँटे तो,
‘रे दे…बता
जिन्दगी में कितने काँटे ?
बस एक दो,
और कूल रहे
फूल रहे, काँटों के बीच, क्यों भूल रहे

कहती है पलट
सी…मा
माँ…सी मैं देती संरक्षण
सीता समेत जानती ही जनता जनार्दन
किसी भी कीमत पर न उलांघनी रेखा लखन
आमरण
शब्द ही कह रहा मर…याद
तलक मरण रखना याद
परिधि पर धी
मतलब केन्द्र स्व धी
स्वाधीनता
और यदि पराधीनता भात है
तो अगर बात है
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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