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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -165

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
कैसा जमा…ना आ गया है,
आजकल जब-तब सुन लो,
यह पत्ता पत चला
पतझड़ से पहले ही, झर चला
भगवान् !
‘पीत-पात’ फिर भी ठीक,
मगर भगवन्,
ये हरे-भरे पत्ते डाल पर देर तक,
दाल गलाने में पीछे क्यों रह जा रहे हैैं,
भगवन् !
कल एक सौ बीस तक जीने वाले नेक थे,
पर आज जीने वाले एक सौ…
बीस अनेक हैं
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
साँच
आज देह काँच
कल देह माटी थी
बैल गाड़ी से गिर टूट-फूट जाये,
तो जोड़ ली जाती थी
रेल गाड़ी पे
सवार हम आज
जिसकी कोई नहीं गेल, वो गाड़ी पे
उससे गिर टूट-फूट जाये तो
दूर…सुदूर देह
मिलेगी नहीं किराच भी
यानि ‘कि आज देह काँच की
सो…’रे जिया सुन लिया कर
थोड़ी बहुत ‘भी’तर आवाज,
साँच
आज देह काँच
और सुनिए,
सिरा-सिरा के खाना
दूसरी
‘बात’
दोष ‘री
गर्म खीर वही
सीरा डाल-डाल के खाना
हमें यह मानव चोला पिनाया था,
इस हिदायत के साथ
‘कि विषय-भोग
सिरा-सिरा के खाना है
हमनें ली झुलसा जीव ‘आत्मा’
न सिर्फ जीभ अपनी
क्या, मुख ‘हर बोलो’ न सुनी
‘के सौ से पार…
पूर्वज कर गलहार
ये नुख्सा
और
उठाते हम नुकसां
‘राख…
बनता नाक’
और जीव
शत-शरद्
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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