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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -162

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन !
मेरी माँ ने कहा था, जिसे दिल से पुकारो,
वो जरूर आता है,
भगवन् !
मैं सिर्फ और सिर्फ आपका भक्त हूँ
सुबहो-शाम,
आपके नाम की माला ही फेरता रहता हूँ
लेकिन स्वामिन् !
आप सुदूर मेरे घर,
दूर मेरे ग्राम,
भगवन् !
मेरे प्रदेश में भी आप नहीं आये कभी भी,
भगवन् !
कब पूरा होगा सपना मेरा,
मैं आसाम का एक छोटा या आसामी हूँ
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
देखिये
इतने प्यारे नाम वाले,
प्रदेश के रहवासी होकर भी,
धीरज खो रहे हैं आप,
ज़र्रा सुनिए तो,
आपके प्रदेश का अक्षर-अक्षर
खुद-ब-खुद कुछ राज खोलता है,
‘के ‘आशा में’ रखिये विश्वास
आने तलक अखीरी श्वास
देखिए,
मैं निकला हूँ, वन्दना के लिये
द्वीप-अढ़ाई
सिद्ध शिला जो देती दिखलाई,
भीतर आँख से,
क्या नाक अपनी आसमान से लगाई
और दूरी ये कम नहीं,
है पूरी की पूरी
पैंतालीस लाख योजन
सो मैं पाँव-पाँव
नापते हुये गाँव-गाँव
आप तक आ ही तो रहा हूँ
लिये सफल लोचन
आने तलक अखीरी श्वास
‘के ‘आशा में’ रखिये विश्वास
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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