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आरती

आरती-ग्रह अरिष्ट निवारक

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

ग्रह अरिष्ट निवारक
आरती

आरती तीर्थंकर चौबीस ।
उतारें ग्रह-अरिष्ट निशिदीस ।।
मान के भुवन-भुवन इक ईश ।
प्रफुल्लित रोम-रोम नत शीश ।।
उतारें ग्रह-अरिष्ट निशिदीस ।।
आरती तीर्थंकर चौबीस ।

लिये ‘ग्रह-सूर’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-सोम’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-भौम’ साथ परिवार ।
चला आता साँचे दरबार ।।
बना बाती-कपूर मणि-दीव ।
करे आरति रख भक्ति अतीव ।।

लिये ‘ग्रह-बुद्ध’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-गुरू’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-शुक्र’ साथ परिवार ।
चला आता साँचे दरबार ।।
बना बाती-कपूर मणि-दीव ।
करे आरति रख भक्ति अतीव ।।

लिये ‘ग्रह-शनी’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-राहु’ साथ परिवार ।
लिये ‘ग्रह-केतु’ साथ परिवार ।
चला आता साँचे दरबार ।।
बना बाती-कपूर मणि-दीव ।
करे आरति रख भक्ति अतीव ।।

मान के भुवन-भुवन इक ईश ।
प्रफुल्लित रोम-रोम नत शीश ।।
आरती तीर्थंकर चौबीस ।
उताऊँ मैं भी, हित आशीष ।

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