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आरती

आरती-विमल नाथ

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

विमल नाथ
आरती

लाओ दीपों को थरिया
उतारो मिल के आरतिया
भगवन् विमल शिव सारथिया
नयन सजल
भगवन् विमल
लाओ दीपों को थरिया
उतारो मिल के आरतिया
भगवन् विमल शिव सारथिया

पहली आरतिया गर्भ अ‌नोखी ।
माँ सपने अपने, झिर रत्नों की ।।
क्या कहने, महिने पन्द्रह अविरल ।

दूजी आरतियाँ जन्म निराली ।
दर्श मात्र शचि भव इक अवतारी ॥
क्या कहने, धारा मेर क्षीर जल ।

तीजी आरतिया त्याग विशेषा ।
राज-पाट तज फिर उत्पाट केशा ।।
क्या कहने, परित्याग परिग्रह सकल ।

चौथी आरतिया ज्ञान अनूठी ।
झोली अनन्त चतुष्टय विभूती ।
क्या कहने, समशरणा नाग नकुल ।

अंतिम आरतिया मोक्ष पुरी की ।
जारी अग्नि शुक्ल आप सरीखी ।
क्या कहने, शिव सुख ‘सहज निराकुल’ ।।

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