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जवाब लाजवाब आचार्य श्री जी

जवाब लाजवाब -71

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

सवाल
आचार्य भगवन् !
ऐसा कोई प्रसंग सुनाईये ना,
जिसमें माँ श्री मन्ती जी आपके लिये,
ये प्रार्थना कर रहीं हो,
‘कि भगवन्
“सद्बुद्धि दो इसे,
नादानी करता रहता है,
ये बाबू अपना” ?
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,
नमोऽस्तु भगवन्,

जवाब…
लाजवाब
है एक बार की बारदात
खलिहान में आ करके,
मैनें पिता जी का था बँटाया हाथ,
मेरे हाथ पर,
मेरे पिता जी ने,
थे रक्खे चार आने,
फिर…
फिर क्या,
थे मेरे होश न ठिकाने
भागते-भागते,
मैं दिखाने माँ को आया था
‘के पहली बार
मैंने आज कुछ कमाया था
मैं निकल आया बाहर,
शोर मचाते…
माँ खाने पर, रह गई बुलाते,
वैसे मैं, रुकता भी तो,
रुक सकता था कैसे,
मेरे जेब में खनखना जो रहे थे पैसे,
तभी मैंने देखा,
एक साइकल के पीछे,
दौड़ रहे थे बच्चे आँखे मींचे
काँच का था बक्सा निराला,
था चिल्लाये जा रहा बक्से वाला
“बम्बई की मिठाई
बम्बई की मिठाई
उसने क्या खाया,
जिसने बम्बई की मिठाई न खाई”
मैंने खरीद ली दे करके पूरे के पूरे पैसे,
‘के दुनिया भी देखे,
थोड़े ही हम कुछ ऐसे वैसे
रखते ही मुँह अन्दर
मिठाई छू-मन्तर
पेट में चूहे कूदते रहे…
माँ के शब्द कानों में गूंजते रहे…
“बेटा खाना खा करके जाना
पैसे फिजूल खर्च करके मत आना”
अब क्या मुँह लेकर जाऊँ
‘के माँ मुँह की खाकर आया हूँ
दबे पाँव, जब घर पहुँचा
‘कि बोली माँ,
हाथ मुँह धो ले,
मैं अपने हाथों से तुझे देती हूँ जिमा
चेहरे से तो लग रहा है,
‘के चार आने में,
कुछ भी न आया,
खरीदकर गुड़ चने चबा लेता,
बताया भी जर्रा
क्या खरीदा, क्या खाया
मेरा सिर झुका देख…
अपने घुटने टेक
‘माँ ने’
की प्रार्थना,
‘कि भगवन्
“सद्बुद्धि दो इसे,
नादानी करता रहता है,
ये बाबू अपना” ?
ओम् नमः
सबसे क्षमा
सबको क्षमा
ओम् नमः
ओम् नमः

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