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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 987

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 987

कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।स्थापना।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी गंगा जल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।जलं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी गंध सजल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।चन्दनं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी धाँ निर्मल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।अक्षतं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी खिला कमल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।पुष्पं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी भोग अखिल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।नैवेद्यं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी ज्योत अचल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।दीपं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी धूप अनल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।धूपं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी मेवे फल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।फलं।।

था आया जैसे कल
चढ़ाने लाया मैं आज भी अर्घ-नवल
कहीं और न जाऊँगा
लेकर के मैं अपना रोना
और जाऊँ भी हो कहाँ
तुम अकेले ही जो मेरे हो ना
कृपा बरसा भी दो ना ।।अर्घ्यं।।

=कीर्तन=
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
नमोऽस्तु आचार्य श्री
नमोऽस्तु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री
जय जयतु जयतु आचार्य श्री

जयमाला
भाग्य विधाता है
तू किमिच्छ दाता है
और मेरा मांगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है

तुझे ही करनी,
मेरे हाथों की रेखाएँ गहरीं
तुझे ही करनी,
मुझे अपना कह के
दशों दिशाएँ बहरीं
तुझे ही करनी,
मेरे हाथों की रेखाएँ गहरीं

भाग्य विधाता है
तू किमिच्छ दाता है
और मेरा मांगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है

मेरा हाथ बस तुम्हारे पैरों तक ही जाता है
और मुझे छूना आसमां है
मुझे पता है
तुझे छुवाना आसमां खूब बखूब आता है
मेरा हाथ बस तुम्हारे पैरों तक ही जाता है

भाग्य विधाता है
तू किमिच्छ दाता है
और मेरा मांगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है

तुझे ही करनी
मेरे हृदय में जगहा इतनी
न सिर्फ़ चाँद तारे
आके रहने लगे,
वो पाताल, ये धरणी
तुझे ही करनी
मेरे हृदय में जगहा इतनी

मेरा हाथ बस तुम्हारे पैरों तक ही जाता है
और मुझे छूना आसमां है
मुझे पता है
तुझे छुवाना आसमां खूब बखूब आता है
मेरा हाथ बस तुम्हारे पैरों तक ही जाता है

भाग्य विधाता है
तू किमिच्छ दाता है
और मेरा मांगने से नाता है
तू मेरा भाग्य विधाता है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
थामे रखना मोर ड़ोर
तोड़ना ‘मत’ छोड़ना

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