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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 963

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 963

सन्त न दूजा विद्या सागर सा
उस जमीं पर
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
इस जमीं पर
यानी ‘कि इस-उस जमीं पर
सन्त न दूजा विद्या सागर सा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।स्थापना।।

कंचन गागर
सुदूर सागर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।जलं।।

गंध गुणाकर
गिर मलयागर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।चन्दनं।।

कान्त सुधाकर
धाँ खलिहां अर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।अक्षतं।।

सरोज जो वर
मान-सरोवर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।पुष्पं।।

नेवज घी गुड़
व्रज अलकापुर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।नैवेद्यं।।

ज्योत जगाकर
घी गैय्या गिर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।दीपं।।

सुगंध आगर
वन गंधा ‘तर’
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।धूपं।।

फल मनवाहर
दिव बागातर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।फलं।।

जल, फल पातर
सुर सौदागर
जाकर लाकर
भेंटूँ समेत श्रद्धा
सुनते हैं, आकर देवों ने पूजा
सन्त न विद्या सागर सा दूजा
सन्मत हंसा
पूरण मंशा
केत अहिंसा
सन्त न दूजा विद्या सागर सा ।।अर्घ्यं।।

कीर्तन
जयतु जय विद्या जय
जय-विद्या जय
जय-विद्या जय
जय जयतु जय विद्या जय

जयमाला
भर आये फिर नैन
बीती-विरहा की रैन
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

ऐ ‘री…सुनो ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

पाँवड़े पलक
राहों में दूर तक
बिछाओ ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

एक भव जलधि नाव
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

भर आये फिर नैन
बीती-विरहा की रैन
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

ऐ ‘री…सुनो ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

रंग गुलाल
सुगंध-जल फुहार
उड़ाओ ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

एक भव जलधि नाव
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

भर आये फिर नैन
बीती-विरहा की रैन
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

ऐ ‘री…सुनो ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

ढ़पली ढ़ोल
झुक घूम-घूम गोल
बजाओ ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

एक भव जलधि नाव
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

भर आये फिर नैन
बीती-विरहा की रैन
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

ऐ ‘री…सुनो ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

पाति फुल-बार
नगर घर द्वार
सजाओ ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी

एक भव जलधि नाव
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

भर आये फिर नैन
बीती-विरहा की रैन
घनी बरगदी छाँव
आये गुरुवर गाँव

ऐ ‘री…सुनो ‘री सखी
आओ, आओ ‘री सखी
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
गुरु किरपा
साहुनी फुहार
‘रे भींगें दिश् चार

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