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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 906

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 906

हाईकू
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।

तुम जो आये ‘ना’,
रुठी गौरैय्या है, दुखी गैय्या है ।
तुम क्यों आये ‘ना’
बनी पूनम भी, ‘मावस काली ।।स्थापना।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ जल कंचन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।जलं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ घट चन्दन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।चन्दनं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ अक्षत कण
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।अक्षतं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ गुल नन्दन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।पुष्पं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ घृत व्यंजन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।नैवेद्यं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ लौं अनगिन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।दीपं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ सुगंध अन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।धूपं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ फल ऋतुअन
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।फलं।।

साथ श्रद्धा सुमन
भेंटूँ द्रव मिश्रण
ले तरबतर नयन
के कभी, लो मेरी भी सुन
है गया भर,
शबरी का घर, है हमारा खाली ।
ए ! राम मेरे,
सुब्हो-शाम मेरे ! दो मना दीवाली ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
आप अन्छुआ मेरा अंगना,
छुआ बीज गगना

जयमाला
मेरी एक न चलती है
झड़ी आंसुओं की लगती है
पल जो तुम्हें
न देखता मैं
जान मेरी निकलती है
मेरी एक न चलती है

चाहता हूँ मैं तुम्हें इतना
चन्दा चकोरा जितना
मेघा मयूरा जितना
दीवा जितना-पतंगा
जितना चकोरा चन्दा
चाहता हूँ मैं तुम्हें उतना

पल जो तुम्हें
न देखता मैं
जान मेरी निकलती है

मेरी एक न चलती है
झड़ी आंसुओं की लगती है
पल जो तुम्हें
न देखता मैं
जान मेरी निकलती है
मेरी एक न चलती है

है हम पतंग, तुम ड़ोरा
तुम कुसुम रंग-विरंग, हम भौंरा
पंख तुम, मैं तितली हूँ
तुम खुशबू, मैं कली हूँ
स्याही तुम, मैं कागज कोरा

चाहता हूँ मैं तुम्हें इतना
चन्दा चकोरा जितना
मेघा मयूरा जितना
दीवा जितना-पतंगा
जितना चकोरा चन्दा
चाहता हूँ मैं तुम्हें उतना

पल जो तुम्हें
न देखता मैं
जान मेरी निकलती है

मेरी एक न चलती है
झड़ी आंसुओं की लगती है
पल जो तुम्हें
न देखता मैं
जान मेरी निकलती है
मेरी एक न चलती है
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

हाईकू

अर्जी
गुरु जी
पाऊँ चरण धूलि,
कभी,
घर भी

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