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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 905

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 905

=हाईकू=
मैं पूछूँ हर रोज, 
‘के कहो ? हुआ आहार कैसा ।
हो पता, किसी रोज,
‘के हुआ तेरा आहार कैसा ।।

वो रोज जल्द ही आये,
सिर्फ यही मेरी अरज ।
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।स्थापना।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
ले जल-दृगज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।जलं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
लिये मलयज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।चन्दनं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
लिये धाँ अज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।अक्षतं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
लिये पंकज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।पुष्पं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
लिये नेवज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।नैवेद्यं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
ले लौं अबुझ
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।दीपं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
ले गंध व्रज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।धूपं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
ले वन-उपज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।फलं।।

तेरे द्वार चले आये
ये भाव सँजो लाये
ले द्रव्य स्रज
पा जाये मेरा भी, द्वार कभी,
तेरी चरण रज ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
फेरते टूटी सुमरनी,
पर न तुमनें सुनी

जयमाला
नीली नीली-सी
आँखें मेरी
यादें तेरी

कर जाती हैं
सीली-सीली सी
आँखें मेरी
‘जि गुरु जी, यादें तेरी

मुस्कान के साथ
तेरी और मेरी
पहली मुलाकात
वो मुस्कान के साथ

आ करके उसकी याद
कर जाती है
सीली-सीली सी
आँखें मेरी

नीली नीली-सी
आँखें मेरी
यादें तेरी

कर जाती हैं
सीली-सीली सी
आँखें मेरी
‘जि गुरु जी, यादें तेरी

सनेह बरसात
कुछ न छुपा के, की मुझसे जो बात
वो सनेह बरसात

आ करके उसकी याद
कर जाती है
सीली-सीली सी
आँखें मेरी

नीली नीली-सी
आँखें मेरी
यादें तेरी

कर जाती हैं
सीली-सीली सी
आँखें मेरी
‘जि गुरु जी, यादें तेरी

खूब आशीर्वाद
मेरे सर पर रखकर अपना हाथ
दिया वो खूब आशीर्वाद

आ करके उसकी याद
कर जाती है
सीली-सीली सी
आँखें मेरी

नीली नीली-सी
आँखें मेरी
यादें तेरी

कर जाती हैं
सीली-सीली सी
आँखें मेरी
‘जि गुरु जी, यादें तेरी
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
भूल से ही, आ जाईये घर,
कभी तो गुरुवर

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