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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 885

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 885

ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।स्थापना।।

थे भेंटे, जल कलशे
जुड़ चाले मंजिल से
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।जलं।।

भेंटी चन्दन प्याली
मन चाली दीवाली
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।चन्दनं।।

भेंटे अक्षत दाने
भाये अक्षर गाने
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।अक्षतं।।

वन नन्द सुमन बरसा
खो चला रुदन बरसा
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।पुष्पं।।

भेंटे चरु घृत वाले
भर चले हृदय छाले
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।नैवेद्यं।।

बालि घृत दीपाली
सर ‘अन’ तरंग खाली
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।दीपं।।

भेंटी सुगंध खुद सी
पाई सुगंध बुध सी
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।धूपं।।

भेंटे फल मिसरी से
जुड़ चले द्यु-पुरी से
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।फलं।।

थी भेंटी द्रव शबरी
निखरी कुछ हट छव’री
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
ढ़ेर दुआ पढ़ देते
मन गुरु जी पढ़ लेते
झट दे देते माफी
माँ की फोटो कॉपी
गुरुवरम्
जय गुरुवरम् ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
सर्दी में धूप गुनगुनी,
गर्मी में छाहरी मुनी

जयमाला
गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

हमेशा, पा रहे है हटके कुछ ऐसा
जिसके आगे, फीका है रुपया-पैसा
पा रहे सुकून, इक अजीबोगरीब वे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

तले अंधेरा नहीं,
कोई क्यों-कर हँसे
न दे धोखा, हवा का झोका जिसे
अबुझ अद्-भुत
इक जगत रोशन, रतन दीव वे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

हमेशा, पा रहे है हटके कुछ ऐसा
जिसके आगे, फीका है रुपया-पैसा
पा रहे सुकून, इक अजीबोगरीब वे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

दूर तलक न जाते छोड़ने गुजरा कल
सुदूर तलक जाते न लेने मेहमां कल
सहज निराकुल जीते,
वर्तमाँ में सदीव वे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

हमेशा, पा रहे है हटके कुछ ऐसा
जिसके आगे, फीका है रुपया-पैसा
पा रहे सुकून, इक अजीबोगरीब वे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे

गुरु जी के करीब जे
हैं बड़े ही खुश नसीब वे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
होता ही गुरु अवतार
लगाने भक्तों को पार

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