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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 845

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 845

मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।स्थापना।।

लाया जल कलशी
साथ ढ़ोक फरसी
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।जलं।।

लाया गन्ध मलय
आया साथ विनय
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।चन्दनं।।

पिटार धाँ शाली
लग कतार ताली
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।अक्षतं।।

पुष्प नन्द बागा
हट-कुछ अनुरागा
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।पुष्पं।।

घृत निर्मित व्यंजन
विस्मित अभिनन्दन
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।नैवेद्यं।।

अनबुझ घृत ज्योती
झिर लग दृग् मोती
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।दीपं।।

सुगंध मन भाता
टेक दिया माथा
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।धूपं।।

फल ऋत ऋत वाले
समेत जयकारे
लो स्वीकार नमन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
मन्दिर मन मेरे
मेरे भगवन ! चरण तेरे
विराजे रहे युँही
और आरजू नहीं ।।फलं।।

जल, गंधाक्षत, पुष्प ले,
चरु, सुगंध, फल, दीव ।
जजूँ चरण गुरुदेव के,
आने और करीब ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
इन्हें गुरु ने चुना,
उन्हें न,
कभी ऐसा न सुना

जयमाला
गुरुवर,
श्री गुरुवर
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
वक्त अपना कीमती विरथा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर
महती किरपा कर
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर

आ बन करके चकोर,
निरखें, गुरु चन्द्रमा मुखड़ा
न खोया किस किसका,
खो चलेगा अपना भी दुखड़ा
अपनी मरजी से

बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर

लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
वक्त अपना कीमती विरथा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर
महती किरपा कर
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर

आ बन करके मयूर,
सुने श्री गुरु-मेघ निनाद
न हुई किस किस की
हो चलेगी अपनी भी पूर्ण मुराद
सिर्फ एक अरजी से

आ बन करके चकोर,
निरखें, गुरु चन्द्रमा मुखड़ा
न खोया किस किसका,
खो चलेगा अपना भी दुखड़ा
अपनी मरजी से

बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर

लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
वक्त अपना कीमती विरथा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर
महती किरपा कर
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
लुटा रहे भर-भर अंजुरी से
बोल, अनमोल, बिन मोल मिसरी-से
महती किरपा कर
गुरुवर,
श्री गुरुवर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
जुड़ना गुरु से है आसान,
बस थमाने कान

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