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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 841

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 841

एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।स्थापना।।

गुरु चरणन छोडूँ धारा
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।जलं।।

भेंटूँ रज मलयज प्याला
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।चन्दनं।।

लिये थाल अक्षत न्यारा
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।अक्षतं।।

भेंटूँ दिव्य पुष्प माला
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।पुष्पं।।

भेंटूँ चरु मनहर प्यारा
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ अकृतिम उजियारा
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।दीपं।।

खेऊँ अनल अगरु काला
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।धूपं।।

भेंटूँ थाल शकरपारा
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ सुरग वाला
जयकारा जय-जयकारा
एक, दो, तीन, चार
विद्यासागर गुरु हमार
पाँच, छै, सात, आठ
मेरे गुरु का हृदय विराट
नौ, दश, ग्यारा, बारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा
जयकारा जय-जयकारा
गुरु-द्वारा तारा-हारा ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
हंस को एक,
पता विवेक,
गुरु जी को अनेक

जयमाला
मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे

ये सिलसिला यूँ ही,
‘जि गुरु जी
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर
तेरे फूल से चेहरे पर
मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर

मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे

अपने इस पावन रिश्ते को,
किसी की भी,
‘जि गुरु जी
अपने इस पावन रिश्ते को,
कभी, किसी की भी,
न लग चले नज़र

ये सिलसिला यूँ ही,
‘जि गुरु जी
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर
तेरे फूल से चेहरे पर
मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर

मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे

टक चलें सितार
लागें चाँद-चार
लहराती रहे यूँ ही, ये भक्ति चुनर

ये सिलसिला यूँ ही,
‘जि गुरु जी
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर
तेरे फूल से चेहरे पर
मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे
ये सिलसिला यूँ ही, कायम रहे उम्र-भर

मेरे ये नैन भ्रमर
तेरे फूल से चेहरे पर
फिदा हो चले
‘के ख़ुदा करे
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
पा बेशुमार गुरु दुलार, 
शिष्य ले बाजी मार

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