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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 827

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 827

जुड़े पुण्य अक्षत नाता
आओ गायें गुरु गाथा
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।स्थापना।।

कलशे जल से भर लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।जलं।।

फूटे गन्ध गन्ध लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।चन्दनं।।

साथ नाम अक्षत लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।अक्षतं।।

दिव-द्रुम दिव्य कुसुम लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।पुष्पं।।

घृत अमरित अरु चरु लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।नैवेद्यं।।

परहित जिया, दिया लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।दीपं।।

हट घट धूप नूप लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।धूपं।।

सरस, हरष रित-फल लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।फलं।।

सहजो सरब दरब लाओ
सद्-गुरु चरण शरण आओ
जोड़ो हाथ, झुका-माथा
जुड़े पुण्य अक्षत नाता
गुरु से बढ़ के और नहीं
इक सुर, सुर न कौन गाता
अखर अखर श्रुत बतलाता
सद्-गुरु एक जगत्‌-त्राता
आओ गायें गुरु गाथा ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
नेकी का रास्ता,
न गुरु को पाता
तो,
पा दूब जाता

जयमाला
मछरिया को पानी चाहिये
जीने के लिये
हमें गुरु-वाणी चाहिये,
जीने के लिये
मछरिया को पानी चाहिये

खुशबू के बिना,
गुल खूबसूरत भी बेकार है
इस प्राणी का,
गुरुवाणी के बिना, कहाँ उद्‌धार है
दरिया को रवानी चाहिये

जीने के लिये
हमें गुरु-वाणी चाहिये,
जीने के लिये
मछरिया को पानी चाहिये

गुरुवाणी वो ड़ोरी,
‘के आसमां छुये पतंग
गुरुवाणी माँ की लोरी,
ले निंदिमा चैन ‘के मन तरंग

खुशबू के बिना,
गुल खूबसूरत भी बेकार है
इस प्राणी का,
गुरुवाणी के बिना, कहाँ उद्‌धार है
दरिया को रवानी चाहिये

जीने के लिये
हमें गुरु-वाणी चाहिये,
जीने के लिये
मछरिया को पानी चाहिये

गुरुवाणी दीपक राग,
‘के जल उठे दीपक बुझे
गुरुवाणी जादू चिराग,
मनचाहा मिला चाहे जिसे

गुरुवाणी वो ड़ोरी,
‘के आसमां छुये पतंग
गुरुवाणी माँ की लोरी,
ले निंदिमा चैन ‘के मन तरंग

खुशबू के बिना,
गुल खूबसूरत भी बेकार है
इस प्राणी का,
गुरुवाणी के बिना, कहाँ उद्‌धार है
दरिया को रवानी चाहिये

जीने के लिये
हमें गुरु-वाणी चाहिये,
जीने के लिये
मछरिया को पानी चाहिये
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
करता मन,
‘कि दुबारा पड़ लूँ,
गुरु चरण

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