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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 825

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 825

गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस
मैं हो चला धन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैनें नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।स्थापना।।

जल कंचन लाया
मेरा पुण्य उदय आया
हाथ मेरे लग चला सुपन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।जलं।।

घट चन्दन लाया
मेरा पुण्य उदय आया
गुम कहीं मेरा वन क्रन्दन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।चन्दनं।।

धाँ अक्षत‌ लाया
मेरा पुण्य उदय आया
लग जमीं मैंने छुआ गगन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।अक्षतं।।

दिव्य पुष्प लाया
मेरा पुण्य उदय आया
डब-डबाये हित और नयन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।पुष्पं।।

घृत नेवज लाया
मेरा पुण्य उदय आया
बोल गद-गद, अमोल पुलकन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।नैवेद्यं।।

अबुझ ज्योत लाया
मेरा पुण्य उदय आया
खुदबखुद सुलझ चली उलझन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।दीपं।।

दिव सुगन्ध लाया
मेरा पुण्य उदय आया
लग ताँता भीतर-ज्ञान-किरण
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।धूपं।।

फल ऋत ऋत लाया
मेरा पुण्य उदय आया
घाट जा लागी मोर-तरण
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।फलं।।

दरब सरब लाया
मेरा पुण्य उदय आया
निराकुल भीतर-बाहर मन
पा तुम्हें अय ! मेरे भगवन्
पाया मैंने नव-जीवन
मैं हो चला धन
मिलने लगा मुझे निश-दीस
गुरु आशीष
गुरु आशीष
मिलने लगा मुझे निश-दीस ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
दे मन चाहा देते,
गुरु जी पढ़ मनवा लेते

जयमाला
आपने जो डाल दी नजर
गुरुवर !
मेरे शहर पर
मेहर कर
आपने जो डाल दी नजर

घनी स्याही बदलिंयों में रोशनी दिखी
लौं जाते दियों के नाम जिन्दगी लिखी

देर भी लगी न पलक भर
आपने जो डाल दी नजर
मेहर कर

आपने जो डाल दी नजर
गुरुवर !
मेरे शहर पर
मेहर कर
आपने जो डाल दी नजर

दरार वाली ये जमीं, फुहार पा गई
पतझड़ वाली रित गई, बहार आ गई

देर भी लगी न पलक भर
आपने जो डाल दी नजर
मेहर कर

आपने जो डाल दी नजर
गुरुवर !
मेरे शहर पर
मेहर कर
आपने जो डाल दी नजर

बाँस बन के बाँसुरी गोपाल मुँह लगा
मन-मोर नाँचने लगा, घन-श्याम रंग रँगा

देर भी लगी न पलक भर
आपने जो डाल दी नजर
मेहर कर

आपने जो डाल दी नजर
गुरुवर !
मेरे शहर पर
मेहर कर
आपने जो डाल दी नजर

घनी स्याही बदलिंयों में रोशनी दिखी
लौं जाते दियों के नाम जिन्दगी लिखी

देर भी लगी न पलक भर
आपने जो डाल दी नजर
मेहर कर

आपने जो डाल दी नजर
गुरुवर !
मेरे शहर पर
मेहर कर
आपने जो डाल दी नजर
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
अरमानों पे न पानी, 
‘फेरें’
गुरु जी सुमरनी

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