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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 812

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 812

धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।
तेरा गुरुकुल, वन-नन्दन मुझे ।
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।स्थापना।।

मैं तो चढ़ाऊँगा कलशे,
क्यूँ न मनाऊँ मैं जलसे,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।जलं।।

मैं तो चढ़ाऊँगा चन्दन,
क्यूँ न करूँगा झुक वन्दन,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।चन्दनं।।

मैं तो मनाऊँगा खुशियाँ,
क्यूँ न चढ़ाऊँ अक्षत धाँ,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।अक्षतं।।

मैं तो उड़ाऊँगा गुलाल,
क्यूँ न चढाऊँ फूलमाल,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।पुष्पं।।

मैं तो चढ़ाऊँगा चरु घी,
क्यूँ न छेडूँ मैं सुर-लहरी,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।नैवेद्यं।।

मैं तो गाऊँगा ज‍श विरद,
क्यूँ न चढ़ाऊँ दीवा-घृत,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।दीपं।।

मैं तो चढ़ाऊँगा अगर,
क्यूँ न थिरकूँ इक पैर पर,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।धूपं।।

मैं तो चढ़ाऊँगा श्री फल,
क्यूँ न करूँ मैं दृग्-सजल,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।फलं।।

मैं तो चढ़ाऊँगा सब द्रव,
क्यूँ न मनाऊँ मैं उत्सव,
तेरी इक नजर,
मेरी हमसफर ।
जीने के लिये,
अब न चाहिये धडकन मुझे ।
धूल चरणन तेरी चन्दन मुझे ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
मुर्झाया खिला चेहरा दिया,
गुरुदेव शुक्रिया

जयमाला
घर मेरे आके तू
हो रहा जो रूबरू
पैरों में बाँध के घुँघरू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ
पैरों में बाँध के घुँघरू

ढोल ढ़पली ले झूम-झूम
गोल चकरी सा घूम-घूम
उड़ा के फूलों की खुशबू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ

घर मेरे आके तू
हो रहा जो रूबरू
पैरों में बाँध के घुँघरू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ
पैरों में बाँध के घुँघरू

बाँसुरी कनाही वाली ले
नैन अपने रख के गीले
भक्त मीरा सा झूम-झूम,
गोल चकरी सा घूम-घूम
उड़ा के फूलों की खुशबू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ

घर मेरे आके तू
हो रहा जो रूबरू
पैरों में बाँध के घुँघरू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ
पैरों में बाँध के घुँघरू

हाथ में गो-घृत दीवाली,
दृग् छलकती मोती थाली
गोल चकरी सा घूम-घूम
उड़ा के फूलों की खुशबू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ

घर मेरे आके तू
हो रहा जो रूबरू
पैरों में बाँध के घुँघरू
करे मन मेरा आज मैं खूब नाचूँ
पैरों में बाँध के घुँघरू
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
न लुटने दें,
श्री गुरु जी पतंग,
न कटने दें

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