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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 707

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 707

=हाईकू=
दीपावली सा पावन,
गुरु जी का आना आँगन ।।स्थापना।।

बदली नव-जबां तकदीर,
मैं भी लाया नीर ।।जलं।।

सर्वोदय ने क्या न पाया,
चन्दन ले मैं भी आया ।।चन्दनं।।

संस्था पूर्णायु सुर्ख़ियों में,
धाँ लाया आने भक्तों में ।।अक्षतं।।

भाग्योदय ने भाग जगाया,
पुष्प ले मैं भीं आया ।।पुष्पं।।

प्रतिभा-मण्डल झुक-झूमे,
भेंटने लाया चरु मैं ।।नैवेद्यं।।

सिद्धोदय ने नाम कमाया,
दीप ले मैं भी आया ।।दीपं।।

दयोदय ने पाई छाया,
सुगंध ले मैं भी आया ।।धूपं।।

भारत भाषा जुबां-जुबां खेले,
में भी लाया भेले ।।फलं।।

अक्षर बन चाले मन्दर,
भेंटूँ अर्घ सादर ।।अर्घ्यं।।

=हाईकू=
श्री गुरु के संग,
सफर का कुछ दूजा ही रंग

।। जयमाला।।
अभिनंदन उनका अभिनंदन
समान दर्पण है जिनका मन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

जिनकी रज-चरण, है समान चन्दन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

समान दर्पण है जिनका मन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

देख पर क्रन्दन, है जिनके तर नयन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

समान दर्पण है जिनका मन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

छोड़ जो जड़ धन, हुये निसंग ज्यों पवन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

समान दर्पण है जिनका मन
उन्हें कोटि-कोटि वंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन

बाँध सिर पे कफन, तकें राह जो मरण
उन्हें कोटि-कोटि नंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन
उन्हें कोटि कोटि नंदन
अभिनंदन उनका अभिनंदन
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
खुशहाली हो 
गुरु जी,
यही अर्जी,
हरियाली हो

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