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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 661

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 661

हाईकू
कोई जगह,
महफूज तो गुरु की गोद वह ।।स्थापना।।

द्वारे तिहारे आये,
खोने बहाने,
दृग्-जल लाये ।।जलं।।

द्वारे तिहारे आये,
होने सलोने,
चंदन लाये ।।चन्दनं।।

द्वारे तिहारे आये,
दीवाने,
दोने धाँ शालि लाये ।।अक्षतं।।

द्वारे तिहारे आये,
वन न रोने,
सुमन लाये ।।पुष्पं।।

द्वारे तिहारे आये,
नोने नवीने, व्यंजन लाये ।।नैवेद्यं।।

द्वारे तिहारे आये,
अंतर् भिंजोने,
प्रदीप लाये ।।दीपं।।

द्वारे तिहारे आये,
धूप ले,
सोने सुगंध भाये ।।धूपं।।

द्वारे तिहारे आये,
द्यु-शिव बोने,
श्री फल लाये ।।फलं।।

द्वारे तिहारे आये,
न कोने-कोने वो अर्घ लाये ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
पनाह आप के पाँव की,
वट की घनी छाँव सी

जयमाला

यही एक अरज हमारी
गुरुदेव जी,
अय ! मेरे गुरु देव जी
चरणों की रज तुम्हारी
पा जाऊँ जो जर्रा सी,
तो जाऊँ बारी-बारी

मेरे बिगड़ रहे काम
मृग मरीच मुकाम
आई होने को शाम
मेरे बिगड़ रहे काम
चरणों की रज तुम्हारी
पा जाऊँ जो जर्रा सी,
तो जाऊँ बारी-बारी

मन न पा रहा सुकूँ
पैरों तले खिसके भू
फिसले हाथ से खुशबू
मन न पा रहा सुकूँ
चरणों की रज तुम्हारी
पा जाऊँ जो जर्रा सी,
तो जाऊँ बारी-बारी

पर, पै खोया हौंसला
रहती रूठी सी हर कला
है बिखरने को घोंसला
पर, पै खोया हौसला
चरणों की रज तुम्हारी
पा जाऊँ जो जर्रा सी,
तो जाऊँ बारी-बारी
गुरुदेव जी,
यही एक अरज हमारी

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
यही कहना,
दी…
आगे भी….
मुस्कान देते रहना

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