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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 658

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 658

हाईकू
पाँवों के पास वाला कोना,
दे अजि दो मुझको ‘ना’ ।।स्थापना।।

रह सकने गौ…रव सा उज्ज्वल,
भेंटूॅं दृग्-जल ।।जलं।।

रह सकने बिन मनोरंजन,
भेंटूॅं चन्दन ।।चन्दनं।।

रह सकने शिव-सुन्दर-सत,
भेंटूॅं अक्षत ।।अक्षतं।।

रह सकने आप-आप मगन,
भेंटूॅं सुमन ।।पुष्पं।।

रह सकने बिन नह्वन-गज,
भेंटूॅं नेवज ।।नैवेद्यं।।

रह सकने निजातम करीब,
भेंटूॅं प्रदीव ।।दीपं।।

रह सकने बन गृहस्थ सन्त,
भेंटूॅं सुगंध ।।धूपं।।

रह सकने जल भिन्न कमल,
भेंटूॅं श्री फल ।।फलं।।

रह सकने कीच बीच स्वर्ण से,
भेंटूॅं अर्घ ये ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
पास गुरु जी के,
आ देखते पल दो पल जीके

जयमाला
जा पहुँचे दिल तलक मेरे
किसी के कदम तो तेरे
और सिर्फ न छू करके दिल आ गये
आई ना तह, तब तलक समाते गये
किसी के कदम तो तेरे

मुझे किस बात की फिकर
अब मुझे किस बात का है डर
तुम जो मेरी रखने लगे खबर
न सिर्फ छिन,
न सिर्फ दिन,
बल्कि रात-रात भर
अय ! मालिक मेरे

जा पहुँचे दिल तलक मेरे
किसी के कदम तो तेरे
और सिर्फ न छू करके दिल आ गये
आई ना तह, तब तलक समाते गये
किसी के कदम तो तेरे

पथरीली भले डगर
आँख गीली भले मगर
हुये तुम जो मेरे हम सफर
अब मुझे किस बात का डर
तुम जो मेरी रखने लगे खबर
न सिर्फ छिन,
न सिर्फ दिन,
बल्कि रात-रात भर
अय ! मालिक मेरे

जा पहुँचे दिल तलक मेरे
किसी के कदम तो तेरे
और सिर्फ न छू करके दिल आ गये
आई ना तह, तब तलक समाते गये
किसी के कदम तो तेरे
अय ! मालिक मेरे
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
‘कि हो, छू बला तू तू-मैं मैं,
दो सिखा वो कला हमें

 

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