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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 623

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 623

हाईकू
पानी कहां,
दृग् हो सके जो भिंगोना,
आ भी जाओ ना ।।स्थापना।।

किया चन्दना उद्धार,
ले जल मैं भी आया द्वार ।।जलं।।

उतारा मीरा का भार,
ले गंध मैं भी आया द्वार ।।चन्दनं।। 

शबरी लिया उबार,
ले सुधां मैं भी आया द्वार ।।अक्षतं।।

मेंढ़क गया पा-पार,
ले पुष्प मैं भी आया द्वार ।।पुष्पं।।

सुनी नीली की पुकार,
ले चरु मैं भी आया द्वार ।।नैवेद्यं।।

दिया कोण्डेश ‘भी’ सार,
ले दीप मैं भी आया द्वार ।।दीपं।।

जटायु लिया निहार,
ले धूप मैं भी आया द्वार ।।धूपं।।

पा गया श्वान ओंकार,
ले फल मैं भी आया द्वार ।।फलं।।

अखीर पाने संथार,
ले अर्घ मैं भी आया द्वार ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
लेटते,
गई
‘आधी-रात’
रही
लो उठ बैठते

जयमाला

‘जि गुरु जी, लेने दो चरण पखार
एक बार,
‘जि गुरु जी, छू लेने दो चरण तुम्हार
यही तो वो,
करने वाले जो, बेड़ा पार,
जयतु जय-कार,

मॅंझधार बीच नैय्या
नहिं छैय्या खेवैय्या
काफूर हहा ! पतवार
पारावार अपार
यही तो वो,
तब थे आये जो, सुन पुकार
जयतु जय-कार,

आँधी सी हवा देखो
था दीवा ‘कि बुझने को
अरु अमावसी अंधियार
बन्धु न सखा न यार
यही तो वो,
तब थे आये जो, सुन गुहार
जयतु जय-कार,

होने वाली थी शाम
न अता-पता मुकाम
नहीं एक, राह थी चार
सब गाती मंगलाचार
यही तो वो,
तब थे आये जो, बन मददगार
जयतु जय-कार,

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
कीजो गुरु जी !
संघ रूप पीछी का,
पंख पीछे का

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