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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 603

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 603

हाईकू
दो दीव थमा,
गुरु जी छाई काली अतीव अमा ।।स्थापना।।

छोड़ी तुमनें जो गहल-म्याऊँ,
सो जल चढ़ाऊॅं ।।जलं।।

छोड़ी तुमनें जो गफलत-भृंग,
भेंटूॅं सो-गंध ।।चन्दनं।।

छोड़ी तुमनें मीन-गफलत,
सो भेंटूॅं अक्षत ।।अक्षतं।।

छोड़ी तुमनें गहल ‘ना…गिन’
सो भेंटूॅं सुमन ।।पुष्पं।।

छोड़ी तुमनें गफलत गज,
सो भेंटूॅं नेवज ।।नैवेद्यं।।

छोड़ी तुमनें गहल-खरगोश,
सो भेंटूॅं ज्योत ।।दीपं।।

छोड़ी तुमनें टेव कूप-मण्डूक,
सो भेंटूॅं धूप ।।धूपं।।

छोड़ी तुमनें वानरी गहल,
सो चढ़ाऊँ फल ।।फलं।।

छोड़ी तुमनें टेव-शतुरमुर्ग,
सो भेंटूॅं अर्घ ।।अर्घ्यं।।

हाईकू
काफी है गुरु का नाम,
ले लीजे जो बिगड़े काम

जयमाला

।। सन्तों की बात निराली है ।।

जग रात जगाना नीरज को ।
उठ प्रात उठाना सूरज को ।।
निशि रोजाना उजियाली है ।
सन्तों की बात निराली है ।।१।।

कर ज्ञान, ध्यान में लग जाना ।
फिर-ध्यान, ज्ञान में लग जाना ।
इक जिन्हें कबाली-गाली है ।
सन्तों की बात निराली है ।।२।।

पल-पल नासा दृष्टि रखना ।
दिल मुट्टी खिल सृष्टि रखना ।।
दृग्-परिणति भोली भाली है ।
सन्तों की बात निराली है ।।३।।

डग भरें बाद, देखें पहले ।
संकल्प शक्ति लख दिल दहले ।।
लख नजर उतरती काली है ।
सन्तों की बात निराली है ।।४।।

आंखों से सब कुछ कह देना ।
ना लेना कुछ, दिल रख लेना ।।
मन बच्चों जैसा खाली है ।
सन्तों की बात निराली है ।।५।।

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू
मेरी धूमिल-छवि,
भवि ! खुद सा कीजे मनस्वी

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