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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 583

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 583

=हाईकू=
छू, बघारना शेखीं आंख-मृग,
ज्यों देखीं आप दृग् ।।स्थापना।।

जल चढ़ाने लाया,
गफलत ‘कि समेटे माया ।।जलं।।

गंध चढ़ाने लाया,
नफरत ‘कि समेटे माया ।।चन्दनं।।

सुधाँ चढ़ाने लाया,
क्षत-पद ‘कि समेटे माया ।।अक्षतं।।

पुष्प चढ़ाने लाया,
मनमथ ‘कि समेटे माया ।।पुष्पं।।

चुरु चढ़ाने लाया,
गद गद-मद ‘कि समेटे माया ।।नैवेद्यं।।

दीप चढ़ाने लाया,
मन मत ‘कि समेटे माया ।।दीपं।।

धूप चढ़ाने लाया,
हरकत ‘कि समेटे माया ।।धूपं।।

फल चढ़ाने लाया,
छल-जिद ‘कि समेटे माया ।।फलं।।

अर्घ चढ़ाने लाया,
अघ-हद ‘कि समेटे माया ।।अर्घं।।

=हाईकू=
बस विघटें बन्धन,
इस-हेत तुम्हें वन्दन

।।जयमाला।।

भरी जादू-गरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं

तू जिसे
उठा नजर देख लेता है
पढ़ा अखर एक देता है
तू जिसे

‘तरी’ उसकी तरी,
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं

तू जिसे
पनाह दृग्-छाहरी देता
सलाह सद्-राह ‘भी’ देता
तू जिसे
बनी उसकी बिगड़ी,
भरी जादू गरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं

तू जिसे
देख दृग् खोल लेता जो
बोल अनमोल देता दो
तू जिसे
खुल पड़ी लॉटरी,
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं
भरी जादूगरी
आँखें ये तेरीं
बातें ये तेरीं

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
चरण-पर्श मिले,
चाहिये और ‘क्या ?
दर्श मिले

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