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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 466

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 466

=हाईकू=
करने जन्म-चन्दन
गुरु पाद-पद्म-वन्दन ।।स्थापना।।

पा कृपा तोर, पार चौर
हा ! नम मोर, दृग् कोर ।।जलं।।

पहली, छोड़ मछली व्याध तीर,
दृग् मोर नीर ।।चन्दनं।।

भील छोड़ के काग मांस ऊ-पार,
मैं भी तुम्हार ।।अक्षतं।।

चाण्डाल गले फूल माल,
रखना मेरी भी ख्याल ।।पुष्पं।।

शियार कक्षा दूसरी पास,
हाथ मेरे आयास ।।नैवेद्यं।।

•नेवला, साँप वानर धन,
मेरा पामर मन ।।दीपं।।

राजकुंवर नंदी,
हा ! मैं कागद ‘गुल’ सुगंधी ।।धूपं।।

तरी केशरी ‘तरी’
मेरी हो रही न झण्डी हरी ।।फलं।।

मेढ़क देव विमान वासी,
मीन पानी मैं प्यासी ।।अर्घ्यं।।

=हाइकू=
काँटे सैकण्ड के होते,
‘गुरु’ घड़ी भर न सोते

।। जयमाला।।

वंशी प्रेम क्या बजाई
सारी दुनिया भागी आई
तेरे पीछे
अंखिंयाँ मीचे
जग अंधेरा, ए ! उजाले
हरने वाले दिल के छाले
ए ! पीछी वाले
तुमने नजर क्या उठाई
जहाँ में रोशनी छाई
छटे बादल काले
ए ! पीछी वाले

वंशी प्रेम क्या बजाई
सारी दुनिया भागी आई
तेरे पीछे
अंखिंयाँ मीचे
जग अंधेरा, ए ! उजाले
हरने वाले दिल के छाले
खुशियों से हुई सगाई
एक मुस्कान क्या पाई
रीझे रुठे ताले
ए ! पीछी वाले

तुमने नजर क्या उठाई
जहाँ में रोशनी छाई
छटे बादल काले
ए ! पीछी वाले

वंशी प्रेम क्या बजाई
सारी दुनिया भागी आई
तेरे पीछे
अंखिंयाँ मीचे
जग अंधेरा, ए ! उजाले
हरने वाले दिल के छाले

तेरी पड़ते ही परछाई
रोगों की हुई विदाई
बाल-वैद्य निराले
ए ! पीछी वाले

तुमने नजर क्या उठाई
जहाँ में रोशनी छाई
छटे बादल काले
ए ! पीछी वाले

वंशी प्रेम क्या बजाई
सारी दुनिया भागी आई
तेरे पीछे
अंखिंयाँ मीचे
जग अंधेरा, ए ! उजाले
हरने वाले दिल के छाले
।।जयमाला पूर्णार्घं ।।

=हाईकू=
सामने तेरे
‘प्रयाण-पायें-प्राण’
अपने-मेरे

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