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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 462

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 462

“हाईकू”
पा गये रंग तितली-‘पर’
श्याम ! हम भ्रमर ।।स्थापना।।

जल निर्मल कंचन सा,
दो दया की कर बर्सा ।।जलं।।

लाया चन्दन ‘चंदन’-सा,
दो दया की कर बर्सा ।।चन्दनं।।

कण-कण धाँ मोती जैसा,
दो दया की कर बर्सा ।।अक्षतं।।

मैं लाया पुष्प मेढक सा,
दो दया की कर बर्सा ।।पुष्पं।।

चरु मिश्रित ये षट् रसा,
दो दया की कर बर्सा ।।नैवेद्यं।।

दीप विहर तम निशा,
दो दया की कर बर्सा ।।दीपं।।

धूप महके दिशा दिशा,
दो दया की कर बर्सा ।।धूपं।।

मैं लाया फल शबरी सा,
दो दया की कर बर्सा ।।फलं।।

अर्घ अनर्घ ‘आप’ जैसा,
दो दया की कर बर्सा ।।अर्घं।।

“हाईकू”
पंखे से घूम-घूम,
गुरु जी आप,
हरते ताप

जयमाला

कहीं मुझसे दूर नहीं जाना
बिन तेरे
ए ! भगवन् मेरे

बड़ा मुश्किल होगा जी पाना
कभी मुझसे दूर नहीं जाना

कहीं मुझसे दूर नहीं जाना,
प्रीत जन्मों की तोड़ के
बन के मेरे मीत
ए ! मेरे मन के मीत

मुझसे मुख मोड़ के
प्रीत जन्मों की तोड़ के
कभी मुझसे दूर नहीं जाना
कहीं मुझसे दूर नहीं जाना
बिन तेरे
ए ! भगवन् मेरे

बड़ा मुश्किल होगा जी पाना
कभी मुझसे दूर नहीं जाना

गाया संग गीत
ये जीवन संगीत
अधूरा छोड़ के
मुझे अंधेरे से जोड़ के

बन के मेरे मीत
ए ! मेरे मन के मीत

मुझसे मुख मोड़ के
प्रीत जन्मों की तोड़ के
कभी मुझसे दूर नहीं जाना
कहीं मुझसे दूर नहीं जाना
बिन तेरे
ए ! भगवन् मेरे

बड़ा मुश्किल होगा जी पाना
कभी मुझसे दूर नहीं जाना
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

“हाईकू”
रीझे श्री गुरु,
‘कि बस दूर भले,
चाँद लिया छू

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