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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 453

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 453

=हाईकू=
रखते गुरु जी ! खबर सब की,
दूजे रब ही ।।स्थापना।।

स्वीकार जल, ओ सन्त-शिर- मौर,
दो थमा दौड़ ।।जलं।।

स्वीकार गंध, ओ ! निर्ग्रन्थ बेजोड़,
दो दिला छोर ।।चन्दनं।।

स्वीकार धाँ, ओ समन्त-भद्रौर,
दो थमा ध्यां गौर ।।अक्षतं।।

स्वीकार पुष्प, ओ सन्त गणन-पोर,
लो थाम डोर ।।पुष्पं।।

स्वीकार चरु, ओ भदन्त ! चित् चोर,
त्राहि माम् ! होड़ ।।नैवेद्यं।।

स्वीकार दीप, ओ ‘नन्त-सिन्धु’ छोर,
दो ‘नन्त’ जोड़ ।।दीपं।।

स्वीकार धूप, ओ पन्थ भुक्ति दोर,
दो मिंटा शोर ।।धूपं।।

स्वीकार फल, ओ पन्थ मुक्ति दोर,
दो भिंटा भोर ।।फलं।।

स्वीकार अर्घ, ओ माहन्त भोर,
लो कर विभोर ।।अर्घं।।

=हाइकू=
किया बाँसुरी, बाँस
हूॅं मैं भी खड़ा पांवन पास

।।जयमाला।।
रब-सी, सब-की मदद इतनी करता क्यूँ है।
दे बता,
ए मेरे मन के देवता,
ले आँसू और के आँख अपनी भरता क्यूँ है।

जा घर-द्वार हर किसी के
छप्पर फाड़ कर खुशी से
दे खुशिंयों का आना
नज़राना,
दे खुशियों का आना
सिवा तेरे
अय ! शिव मेरे,
न किसी और ने जाना
रब-सी सबकी फिकर इतनी करता क्यूँ है
दे बता,
ए मेरे मन के देवता,
ले आँसू और के आँख अपनी भरता क्यूँ है।

जा घर द्वार हर किसी के
गम निकाल जिन्दगी से
दे दुआओं का आना
नज़राना,
दे खुशियों का आना
सिवा तेरे
अय ! शिव मेरे,
न किसी और ने जाना
रब-सी, सब की खबर इतनी रखता क्यूँ है
रब-सी सबकी फिकर इतनी करता क्यूँ है
रब-सी, सब-की मदद इतनी करता क्यूँ है
दे बता,
ए मेरे मन के देवता,
ले आँसू और के आँख अपनी भरता क्यूँ है
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

=हाईकू=
कभी न आते,
लोगों के कहने में, गुरु-‘बताते’

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