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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 372

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 372

हाईकू

न ‘कि एक से, करे प्यार,
हरेक से गुरु द्वार ।।स्थापना।।

हाथ दृग् जल बस,
‘मैं दो गला’ दो बना त्रिदश ।।जलं।।

हाथ चन्दन बस,
होना ‘कछुआ, ‘मैं’ हारा शश।।चन्दनं।।

हाथ धाँ बस,
कभी, हों सार्थ नाम ‘कि ‘दश-दश’ ।।अक्षतं।।

हाथ सुमन बस,
कण मैं, होना मण पारस।।पुष्पं।।

हाथ षट् रस,
पन्ना मैं, होना हेत सम-दरश ।।नैवेद्यं।।

साथ घी बाती बस,
माटी मैं, मुझे होना कलश ।।दीपं।।

हाथ सुगंधी बस,
बाँस में बंशी होना सरस ।।धूपं।।

हाथ श्री फल बस,
काँच मैं होना है आदरश ।।फलं।।

हाथ अरघ बस,
स्याही में, पाना सुराही जश ।।अर्घ्यं।।


हाईकू

मानने वाला गुरु की बात,
पाता ही आशीर्वाद

जयमाला

जिया मेरा
क्या भक्त मीरा
क्या भक्त शबरी, हर वक्त
सब ही तो कहते हैं ।

भगवन् भक्तों के वश में रहते हैं ।
दिल की धड़कन में रहते हैं ।
साँस सरकन में रहते हैं ।
भगवन भक्तों के मन में रहते है ।
मेरा मन
क्या चोर अञ्जन
क्या बाला चन्दन,

जन जन तो कहते हैं ।
भगवन भक्तों के मन में रहते हैं ।
जिया मेरा
क्या भक्त मीरा
क्या भक्त शबरी, हर वक्त
सब ही तो कहते हैं ।

सपनों में रहते हैं ।
खास अपनों में रहते हैं ।
भगवन् भक्त-नयनों में रहते हैं ।
मेरा मन
क्या चोर अञ्जन
क्या बाला चन्दन,
जिया मेरा
क्या भक्त मीरा
क्या भक्त शबरी, हर वक्त
सब ही तो कहते हैं ।

भगवन् भक्तों के वश में रहते हैं ।
दिल की धड़कन में रहते हैं ।
साँस सरकन में रहते हैं ।
भगवन भक्तों के मन में रहते है ।
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

हाईकू

बुरी जिद,
लो बाँध बिस्तर,
पड़ी गुरु नजर

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