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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 356

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 
  • परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
    पूजन क्रंमाक 356

    =हाईकू=
    जो पड़ जाते पीछे,
    ‘गुरु’
    उनको ले चालें खींचे ।।स्थापना।।

    लिये उदक हुआ आना,
    झलक पाने रोजाना ।।जलं।।

    लिये चन्दन हुआ आना,
    दर्शन पाने रोजाना ।।चन्दनं।।

    ले शाली धान हुआ आना,
    मुस्कान पाने रोजाना ।।अक्षतं।।

    ले फूल हुआ आना,
    चरण धूल पाने रोजाना ।।पुष्पं।।

    ले चरु हुआ आना,
    तेरी नजर पाने रोजाना ।।नैवेद्यं।।

    ले दीपा हुआ आना,
    तेरी किरपा पाने रोजाना ।।दीपं।।

    ले धूप हुआ आना,
    तुम सी डूब पाने रोजाना ।।धूपं।।

    ले फल हुआ आना,
    तेरे दो पल पाने रोजाना ।।फलं।।

    ले हुआ आना,
    ‘अरघ’
    साक्षात् चढ़ा पाने रोजाना ।।अर्घ्यं।।

    =हाईकू=
    न मनमानी करते,
    ‘गुरु’
    उन्हें ज्ञानी करते

    ।। जयमाला ।।

    गुरु नाम गुरू जयवन्तो ।
    शिख स्वाम पुरू जयवन्तो ।।
    निर्दाम वैद्य जयवन्तो ।
    दिव धाम केत जयवन्तो ।।१।।

    निष्काम प्रीत जयवन्तो ।
    अब नाम जीत जयवन्तो ।।
    विश्राम भाग जयवन्तो ।
    त्रिक शाम जाग जयवन्तो ।।२।।

    जग घाम छांव जयवन्तो ।
    रट राम नांव जयवन्तो ।।
    गत ताम झाम जयवन्तो ।
    पत शाम शाम जयवन्तो ।।३।।

    गिर स्वाम नाप जयवन्तो ।
    अर क्षाम् जाप जयवन्तो ।।
    मद काम चूर जयवन्तो ।
    दिव चाम नूर जयवन्तो ।।४।।

    गुण आम मौर जयवन्तो ।
    परिणाम गौर जयवन्तो ।।
    शिव-वाम कन्त जयवन्तो ।
    पिरणाम नन्त जयवन्तो ।।५।।

    ।।जयमाला पूर्णार्घं।।

    =हाईकू=
    भरा द्वन्द से,
    गुरुदेव
    ‘जी’
    भर दो आनन्द से

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