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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 286

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 286

==हाईकू==
डाल दो, झोली में,
हमार
श्री गुरुजी चाँद चार ।।स्थापना ।।

भेंटूँ नीर,
आ जो सका आप ‘भक्ति-नौ-धा’-लकीर ।।जलं।।

चन्दन भेंटूँ
पुण्य नौ-धा भक्ति ‘कि फिर समेटूँ ।।चन्दनं।।

तुमनें भक्ति नव-धा दी जो मुझे,
भेंटूँ धाँ तुझे ।।अक्षतं।।

नवधा भक्ति आश जो हुई पून,
भेंटूँ प्रसून ।।पुष्पं।।

नौधा-भक्ति जो तेरी,
मेरी सहज,
भेंटूँ नेवज ।।नैवेद्यं।।

तुमनें मुझे दी जो नवधा भक्ति,
मैं भेंटूँ ज्योती ।।दीपं।।

तुमनें मुझे नवधा-भक्ति जो दी,
भेंटूँ सुगंधी ।।धूपं।।

पाने नवधा-भक्ति फिर-के कल,
भेंटूँ श्री-फल ।।फलं।।

नवधा भक्ति पा फूला न समाऊँ,
अर्घ्य चढ़ाऊँ ।।अर्घ्यं।।

==हाईकू==
अपने आप सा ही,
लो बना गुरु जी !
दिले-शाही ।।

।। जयमाला ।।
ए ! शरण बेवेजह !
एक ख्वाहिश
चरणों में दे दो जगह ।।
ए ! शरण बेवेजह !

देख जा जगह-जगह आया ।
कहीं भी पाई ना छाया ।।
हाँ पाई ‘पाई माया’ तो,
जो निकली हरजाई हा ! हा !
ए ! शरण बेवेजह !
एक ख्वाहिश
चरणों में दे दो जगह ।।
ए ! शरण बेवेजह !

पिया जा घाट घाट पानी ।
भरी दुनिया में नादानी ।।
स्वार्थ क्या निकला यहाँ-वहाँ,
बनी दुनिया लो अनजानी ।
ए ! शरण बेवेजह !
एक ख्वाहिश
चरणों में दे दो जगह ।।
ए ! शरण बेवेजह !

राह नापी पैंय्या पैंय्या |
दोगली दुनिया की दुनिया ।।
और तो और अंधेरे में,
साथ छोड़े अपनी छैय्या ।।
ए ! शरण बेवेजह !
एक ख्वाहिश
चरणों में दे दो जगह ।।
ए ! शरण बेवेजह !

।।जयमाला पूर्णार्घं।।

==हाईकू==
‘गईं गल्तियाँ काफी हो,
‘जि गल्तियों की दे माफी दो’

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