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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 268

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 268

*हाईकू*
विनती मेरी,
ओ !
कीजो, अपनों में, गिनती मेरी ।।स्थापना।।

भेंटूँ उदक,
ओ ! दिखा दो, अपनी एक झलक ।।जलं।।

भेंटूँ चन्दन,
ओ ! हटक दो, पड़ा पीछे क्रन्दन ।।चन्दनं।।

भेंटूँ धाँ शाली,
ओ ! देखो, पड़ी पीछे नजर काली ।।अक्षतं।।

भेंटूँ सुमन,
ओ ! देखो, पड़ा पीछे वन रुदन ।।पुष्पं।।

भेंटूँ व्यञ्जन,
ओ ! हटक दो, लागे पूजा न मन ।।नैवेद्यं।।

भेंटूँ घी दिया,
ओ ! हटक दो, पड़ी पीछे दृग् तिया ।।दीपं।।

भेंटूँ सुगंध,
ओ ! देखो, पड़ा पीछे पन–स्वच्छंद ।।धूपं।।

भेंटूँ श्री फल,
ओ ! हटक दो, पड़ी पीछे गहल ।।फलं।।

भेंटूँ अरघ,
ओ ! हटक दो, पड़े पीछे हैं, अघ ।।अर्घ्यं।।

*हाईकू*
‘हैं आप कुछ अलग,
पड़ा पीछे न यूँ ही जग’

।।जयमाला।।
जा ‘री पवन
ए ! जा ‘री पवन
गुरु जी चरण
छू आ ‘री पवन

कहना बहुत आती है, याद तुम्हारी |
नैना भिंजा जाती है, याद तुम्हारी ।।

आवें या देवें ‘पर’
उड़ तिरा ‘कि छूवें दर
इसके सिवा न फरियाद हमारी ।
जा ‘री पवन
ए जा’ री पवन
गुरु जी चरण
छू आ ‘री पवन ।

कहना बहुत आती है, याद तुम्हारी ।
रैना जगा जाती है, याद तुम्हारी ।।

आवें या देवें ‘पर’
उड़ तिरा ‘कि छूवें दर
इसके सिवा न फरियाद हमारी।
जा ‘री पवन
ए जा’ री पवन
गुरु जी चरण
छू आ ‘री पवन ।

कहना बहुत आती है याद तुम्हारी ।
चैना चुरा जाती है याद तुम्हारी ।।

आवें या देवें ‘पर’
उड़ तिरा ‘कि छूवें दर
इसके सिवा न फरियाद हमारी ।
जा ‘री पवन
ए जा’ री पवन
गुरु जी चरण
छू आ ‘री पवन ।
।। जयमाला पूर्णार्घं ।।

*हाईकू*
हुईं संभल-संभल भी गल्तियाँ,
कीजिये क्षमा ।

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