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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 237

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित

पूजन क्रंमाक 237

फूल पथ में हों, या काँटे ।
सदा मिलें जो, मुस्कुराते ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
करें संस्थित मुकति मग में ।। स्थापना ।।

भोर, ना लख पाई सोते ।
हेत क्या ? क्यों उड़वे तोते ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
तीर दें, जल-घट लिये हमें ।। जलं ।।

स्वानुभव होगा ना कैसे ।
सिद्ध जो आसन पहले से ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
धीर दें,चन्दन लिये हमें ।। चंदनं ।।

हुये क्या प्रतिक्रमण करने ।
अश्रु के बने नयन झरने ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
विनय दें, अक्षत लिये हमें ।। अक्षतम् ।।

मदन आ क्या कर पावेगा ।
जो न मन साथ निभावेगा ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
विजय दें, पहुपन लिये हमें ।। पुष्पं ।।

क्षुधा जब मान रोग ली है ।
गृद्धता बात दोगली है ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
सुधा दें, व्यञ्जन लिये हमें।। नैवेद्यं ।।

अब कहाँ, दीप तले अन्धर ।
रत्न दीपक जो शोभे कर ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
सुज्ञाँ दें, दीवा लिये हमें ।। दीपं ।।

चरण से छूने जाते भू ।
नयन से पहले आते छू ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
सुध्याँ दें, सुगन्ध लिये हमें ।। धूपं ।।

कहे कुछ रसना पल अगले ।
आये छू मिसरी को पहले ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
सुमति दें, ऋतु-फल लिये हमें ।। फलं ।।

छू रहे भले आशमाँ है ।
बसाये प्रभु श्वास माँ है ।।
जलज जल-भिन्न वे जग में ।
सुगति दें, सब-द्रव लिये हमें ।। अर्घं ।।

==दोहा==

सुनते गुरु गुण-गान से,
पल में पाप पलाय ।
आ पल दो पल के लिये,
रँगा-भक्ति रँग जाय ।।

।। जयमाला ।।

जय जय-कारे,
जय-जय कारे ।
आ लगाये, मिल करके सारे
गुरु जय-कारे
जय जयकारे,
जय जयकारे ।
तुम हो अपने हमारे |
तुम ही सपने हमारे ।।
तुम हो तो हैं मुट्ठी में चाँद सितारे ।
गुरु जय-कारे ।
जय जयकारे,
जय जयकारे ।

तुम हो साहस हमारे ।
तुम ही ढ़ाढ़स हमारे ।।
तुम हो तो हैं मुट्ठी में अरमान न्यारे ।
गुरु जय-कारे ।
जय जयकारे,
जय जयकारे ।

तुम ही सब हो हमारे ।
तुम ही रब हो हमारे ।।
तुम हो तो है मुट्ठी में, जन्नत नजारे ।
गुरु जय-कारे ।
जय जयकारे,
जय जयकारे ।
आ लगाये मिलकर के सारे ।
गुरु जय-कारे ।
जय जयकारे,
जय जयकारे ।
जयमाला पूर्णार्घं

==दोहा==

खबर नहीं किस बात की,
अन्तर्-यामी आप ।
भूल-चूक जो भी रहीं,
कर दीजे सब माफ ।।

 

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