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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 133

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रमांक – 133

नाम लिया स्वयमेव ही,
सुलझा उलझा काम ।
बाद काम शुरु जे करें,
पहले लें गुरु नाम ॥
मुझ शबरी श्री राम जो,
तुझ मीरा घनश्याम ।
श्री गुरु विद्या वे तिन्हें,
बारम्बार प्रणाम ।। स्थापना ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न बंदर बाट ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या सम्राट ॥
दर आये जल पात्र लें,
रुजन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। जलं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न गज स्नान ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या गुणखान ॥
दर आये रस गन्ध लें,
तपन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। चन्दनं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न गफलत कीर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भव-तीर ॥
दर आये अक्षत लिये,
रुदन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। अक्षतं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
करें न मंथन नीर ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या धर-धीर ॥
दर आये कर पुष्प ले,
मदन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। पुष्पं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रखें घड़ी सी चाल ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या विद्-भाल ॥
दर आये व्यञ्जन लिये,
व्यसन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। नैवेद्यं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
धरती वत्सल भाव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या थिर-छाँव ॥
दर आये घृत दीप ले,
त्रिपन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। दीपं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
रेत न खेती नाव ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भवि-ठाँव ॥
दर आये दश-गंध ले,
विघन मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार।। धूपं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
वरें न म्याऊँ पंथ ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या भगवंत ॥
दर आये फल-थाल ले,
भ्रमण मिटावन हार ।
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। फलं ।।

पढ़ प्रतिभा थलि बेटियाँ,
चटका रहीं न काँच ।
रही आपकी ही कृपा,
गुरु विद्या धर-साँच ॥
दर आये वसु-द्रव्य ले,
मरण मिटावन हार
द्वार हमारे आ कभी,
स्वीकारो आहार ।। अर्घं ।।

“दोहा”
जिन्हें प्रतिक्षा नित रहे,
प्रतिभा आये पास ।
श्री गुरु विद्या सिंधु वे,
दास बना लें खास ॥

॥ जयमाला ॥
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
गोशाला वाले बाबा का जयकार ॥

था भारत जहाँ बहती दूध धार ।
हाय राम ! करे पानी का व्यापार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
खुली बीनाजी जो शांति दुग्ध धार ।।
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
गोशाला वाले बाबा का जयकार ॥

तलक आज दिया जिसने लाड़ प्यार ।
बूचड़ खाने के पड़ी वो आज द्वार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
पग पग जो खुलीं गोशाला चमत्कार ।।
सभी आओ मिल,लगायें एक बार
गोशाला वाले बाबा का जयकार ॥

हाँ ! यहाँ की कहे आज सरकार ।
दुधारु जो न, है वो पशु बेकार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
जो लिया कहलवा पशु न बेकार ।।
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
गोशाला वाले बाबा का जयकार ॥

सोन चिड़िया कहे था संसार ।
आज भारत बना हाय ! कर्जदार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
सँभाले संघ दयोदय कार्यभार ।।
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
गोशाला वाले बाबा का जयकार ॥

थी दलित थी पतित थी ये नार ।
कह दिया था यहाँ तक भू भार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
पढ़ नारी जो रही न लाचार ।।
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
प्रतिभा थलि वाले बाबा का जयकार ॥

जाने वक्त की पड़ी ये कैसी मार ।
पढ़ लिख भी गये, पे बच्चे बेगार ॥
दया कृपा पे इन्हीं का उपकार ।
पा सभी जो रहे आज रोजगार ।।
सभी आओ मिल, लगायें एक बार ।
हथकरघा वाले बाबा का जयकार ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

“दोहा”
यही विनय अनुनय यहीं,
पल पल आठों याम ।
बालक हूँ गिरने लगूँ,
तो गुरु लेना थाम ॥

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