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आचार्य श्री पूजन

गुरु-पाद पूजन – 98

By मुनि श्री निराकुल सागर जी महाराज 

परम पूज्य मुनि श्री निराकुल सागरजी द्वारा रचित
पूजन क्रंमाक – 98

सत्य यही,शिव यही,यही इक,
सुन्दर जग-जन में ।
कहता कौन ? न सागर जन्मे,
दरिया जीवन में ।।
मूक प्राणियों ने कह अपना,
जिन्हें पुकारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।स्थापना।।

पल-पल मरणा-वीची अवसर,
जो जागृत रहते ।
ध्यान-विपाक-विचय का कर,
सारे परिषह सहते ॥
कल-जुग जिनका सुमरण भवि,
भव-जलधि किनारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।जलं।।

संघ बनाया गुरुकुल गुरु आज्ञा,
सिर धर जिनने ।
जला रखी तप द्वादश दावानल,
भव-वन दहने ।
झरती जिनकी नगन देह से,
प्रवचन धारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।चंदन।।

ज्ञान सिन्धु गुरु के जो पहले,
शिष्य कहाये हैं ।
सुन पशुअन क्रन्दन जिनके,
नयना भर आये हैं ।
जिन्होंने किन संध्या गुरु का,
नाम विसारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।अक्षतम्।।

लगा बाढ़-नव करें शील की,
जो नित रखवाली ।
जिन्हें एक से कॉंच कनक इक,
विरदावलि गाली ।।
संघ चतुर्विध जिनका जग में,
सबसे न्यारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।पुष्पं।।

जिन सा जीवन हो मेरा भी,
जग की अभिलाषा ।
जिन्हें रुचे कब आत्म सदन बिन,
और कहीं वासा ॥
जिनने अन्तर् मन से विषयन,
नेह विड़ारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।नैवेद्यं।।

सर गुरु कुन्द-कुन्द मानस के,
एक हंस जग में ।
निबसा रक्खा माँ प्रवचन को,
जिनने रग-रग में ॥
अपने प्राणों से भी ज्यादा,
संयम प्यारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।दीपं।।

जग जाहिर है अनुभय भाषा,
कलि जिनकी थाती ।
पीछि-कमंडल,फिर कोई तो,
दृग् नासा साथी ।
जिन सा जैन गगन में दूजा,
कौन सितारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।धूपं।।

सार्थ चॉंद सा मुख जिनका सुख,
अमरित बरसाता ।
क्षमा बाद नव धर्म सभी से,
है जिनका नाता ।।
किसने नहीं जगत् मुड़-मुड़ कर,
जिन्हें निहारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।फलं।।

जिनके अन्दर लहराता,
करुणा का सागर है ।
अरे ! तेज में जिनके आगे,
कहाँ दिवाकर है ।।
मैं क्या जिनका दीवाना,
त्रिभुवन ये सारा है ।
गुरु विद्या सागर चरणों में,
नमन हमारा है ।।अर्घं।।

“दोहा”

धरती जिनकी सेज है,
अम्बर है आकाश ।
श्वास-श्वास पे सिन्धु वे,
विद्या करें निवास ॥

॥ जयमाला ॥

जय जय कार,जय जयकार ॥

पिता मल्लप्पा आंगन द्वार ।
निशि पूनम शारद अवतार ।।
हर्ष मात श्री मन्त अपार ॥
जय जय कार,जय जयकार ॥

सानिध देश भूषणाचार ।
कर प्रतिमा ब्रम-चर स्वीकार ।।
आ पहुँचे गुरु ज्ञान दुवार ।
जय जय कार,जय जयकार ॥

पुण्य अपार भूम अजमेर ।
फिरी बिनौली सॉंझ सबेर ।।
बने दिगम्बर मुनि व्रत धार ॥
जय जय कार,जय जयकार ॥

लख तप ज्ञान ध्यान संलीन ।
रत सामायिक साँझन तीन ।।
आतुर देने पद आचार ।
जय जय कार,जय जयकार ॥

चर्चा काल चतर्थ समान ।
देख दंग धीमन् श्रीमान ।।
धन ! अपने घर करा अहार ।
जय जय कार,जय जयकार ॥

प्रवचन इन कुम्हार घट चोट ।
सर उतार जन परिग्रह पोट ।।
‘सहज-निराकुल’ भव जल पार ।
जय जय कार,जय जयकार ॥
।।जयमाला पूर्णार्घं।।

“दोहा”

निकले पर पीड़ा निरख,
जिनके मुख से चीख ।
गुरु विद्या वे कर कृपा,
राखे निज नजदीक ॥

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